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अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा/देवेंद्र जेठवानी

अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा”

अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा,

         अब हर बात पर, वो मुझे समझाने लगा,

ईमानदारी से जिया जीवन, न किया कभी दगा,

        सबको समझा अपना, क्या पराया, क्या सगा,

कल तक जो जान था, घर की,

            अब वो सबको सताने लगा,

अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा…!!!

जीवन-भर करी मेहनत,

           मैंने इन बच्चों के लिये,

क्या खबर थी, ये मुझको,

      थोड़ी भी जगह नहीं देंगे,

                           रहने के लिये,

बस अब तो बातें ही रह गई हैं,

               कहने के लिये,

बची है बाकी ज़िन्दगी,

           गम सहने के लिये,

अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा…!!!

लेखक

  • देवेंद्र जेठवानी जन्मतिथि :- 14/09/1992 जन्म स्थान :- भोपाल (म.प्र.) निवास स्थान :- भोपाल (म.प्र.) शिक्षा :- B.Com Graduation M.B.A. (marketing, finance) मास्टर्स रूची :- कविता, ग़ज़ल, शेर, शायरी पेशा :- प्राइवेट कर्मचारी ( प्राइवेट बैंक में कार्यरत)

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अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा/देवेंद्र जेठवानी

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