अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा”
अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा,
अब हर बात पर, वो मुझे समझाने लगा,
ईमानदारी से जिया जीवन, न किया कभी दगा,
सबको समझा अपना, क्या पराया, क्या सगा,
कल तक जो जान था, घर की,
अब वो सबको सताने लगा,
अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा…!!!
जीवन-भर करी मेहनत,
मैंने इन बच्चों के लिये,
क्या खबर थी, ये मुझको,
थोड़ी भी जगह नहीं देंगे,
बस अब तो बातें ही रह गई हैं,
कहने के लिये,
बची है बाकी ज़िन्दगी,
गम सहने के लिये,
अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा…!!!
अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा/देवेंद्र जेठवानी