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मैं डायन नहीं हूँ/डाॅ. मृत्युंजय कोईरी

चमेली का पति घर से पैदल निकला। सवारी बस से शहर इलाज कराने चला गया। साथ में चमेली भी गयी। दो दिन के बाद गाड़ी में उनका लाश आया। पति के अचानक निधन के ठीक तीन साल बाद इकलौता पुत्र बीमार हो गया। डाॅक्टर को दिखाया तो डाॅक्टर ने भर्ती होने को कहा। किंतु दर्द का दवा लेकर घर चला गया। यहाँ-वहाँ डायन-भूत करता रहा। गुनी-ओझा पैसा लूटकर जाते रहें। अंत में अपने मित्र की सलाह पर एक आश्रम चला गया। लोगों का कहना है कि जो व्यक्ति पन्द्रह दिनों तक विधि-विधान से ईश्वर का नाम लेता रहेगा। कैंसर, किडनी, लकवा, लिवर आदि कई भी असाध्य बीमारी हो, वहाँ ठीक हो जाता है। चमेली का पुत्र पन्द्रह दिन की जगह एक महीना ईश्वर का नाम लेता रहा। लेकिन पाँंच प्रतिशत भी ठीक नहीं हुआ। बल्कि बीमारी बढ़ती गयी। खाने को भी पेट भर नहीं मिलता। तंग होकर रात में कुआँ में छलांग लगाकर आत्महत्या कर लिया। तब से गाँव के लोगों को लगने लगा कि ये औरत डायन सीख रही है। पहले अपना पति को खायी। फिर अब पुत्र को। पुत्र ने खुद कुआँ में छलांग नहीं लगाया। डायन अपनी शक्ति से कुआँ में छलांग लगाने पर विवश की।
पुत्र के निधन के तीन साल बाद इकलौता पोता की सड़क दुर्घटना से मौत हो गयी। तब से गाँव वालों ने मान लिया कि ये औरत डायन सीख ली। ग्रामीणों का कहना है, ‘‘डायन का भूत कहता है कि तुम पहले पीठ खायेगी या सुहाग या पेट। पीठ का मतलब भाई, सुहाग का मतलब पति और पेट का मतलब पुत्र। तभी ये औरत कही होगी। मैं पहले सुहाग खाऊँगी। इसीलिए पहले पति मरा, फिर पुत्र। उसके बाद अब पोता को खायी। अब तो पड़ोस और गाँव वालों की बारी है।’’
विधवा चमेली देवी को अब गाँव में सब डायन कहने लगा। किसी का पैर या सिर दर्द देने पर गाली देते हैं, ‘‘डायन! अपना मर्द, बेटा और पोता को खाने पर भी पेट नहीं भरा। अब मुझे खाने में तुल गयी हो। हमेशा दवा खाने पर भी ठीक नहीं …………।’’
किसी का बच्चा रोने पर गालियाँ देते, ‘‘अपना परिवार को खाने पर मन नहीं भरा। अब मेरा दुधमुँहा पुत्र को खाने बैठी हो। अभी के अभी ठीक कर दे, वरना मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं हूँ। गुनी-ओझा बुलाकर गाँव के बीच में नंगा नचवा दूँगी।’’
चमेली सुनकर भी अनसुना कर देती है। लेकिन किसी का बछड़ा, गाय, बैल मरे। कोई पेड़ से गिर जाये। या कुछ भी अनहनी हो जाए। चमेली को गाली देने लगते। एक-दो बार तंग आकर चंडी का रूप धारण करके चिल्ला-चिल्लाकर कहती, ‘‘जा! तुमको जो करना है कर लो! आज मेरा पति, बेटा और पोता के मर जाने पर सब मुझे डायन कहते हो। जब मेरा पति जीवित था। तब किसी की हिम्मत नहीं हुई, मुझे डायन कहने का। क्या गाँव में पहले कोई बीमार नहीं होता था? बच्चा नहीं रोता था? अब मैं बेसहरा, बेबस व लाचार हूँ। मेरा साथ देने वाला कोई नहीं है। इसलिए मैं डायन बन गयी। किसी ने ठीक ही कहा है। निर्बल पर सब अपना बल दिखाते हैं। मैं डायन नहीं हूँ, मैं डायन नहीं हूँ …………।’’
सुकरा का विवाह किया एक साल हो गया। लेकिन बीबी गर्भधारण नहीं की। सुकरा की बीबी को स्त्री रोग विशेषज्ञ ने साफ कह दी है। तुम्हारी बीबी कभी माँ नहीं बन सकती है। क्योंकि विवाह के पहले ही कई बार गर्भ गिरावा चुकी है। लेकिन सुकरा को लगता है कि ये सब चमेली का किया धरा है। ‘‘तू क्या कर दी हो? पार्टी के दिन। आज तक मेरी बीबी गर्भधारण नहीं की। मैं जा रहा हूँ, तांत्रिक के पास, यदि तुम्हारा किया धरा है तो मैं तुमको जिंदा छोड़ने वाला नहीं हूँ।’’ कहता तांत्रिक के पास चला जाता है। तांत्रिक अपने इष्टदेव के आगे बैठकर कहता है, ‘‘तुम्हारी बीबी के पीठ पर एक डायन ने पार्टी के दिन भूत थाप दी है। इसीलिए माँ नहीं बन रही है।’’
‘‘माँ कैसे बनेगी बाबा?’’ सुकरा
‘‘यदि तुम उस औरत को घर बुलाकर तुम्हारी बीबी के पीठ पर हाथ रखवा सकता है तो माँ बन सकती है।’’ तांत्रिक
‘‘मेरे बगल वाली विधवा औरत है न बाबा!’’
‘‘हाँ, हाँ, वही है।’’
सुकरा घर जाकर हाथ में तलवार लेकर सीधे चमेली के घर चला गया और कहा, ‘‘अभी चलो! मेरा घर और मेरी बीबी के पीठ में जो भूत थाप दी हो। उस भूत को लेकर आना! वरना अभी सिर धड़ से अलग कर दूँगा।’’
‘‘मैं डायन नहीं हूँ। मैंने कुछ नहीं किया है।’’ चमेली
‘‘चुपचाप चलो वरना।’’
‘‘मैं जा रही हूँ।’’ कहती चमेली डर से चुपचाप चली जाती है। सुकरा जहाँ-जहाँ हाथ रखने को कहा, चमेली चुपचाप वहाँ-वहाँ हाथ रखती गयी। इसके बाद भी सुकरा की बीबी माँ नहीं बनी।
गाँव वाले बच्चा और नई-नवेली बहू को चमेली की नजरों से बचाकर रखते हैं। एक तेरह साल की लड़की रात-बिरात नहाने के वास्ते तलाब, कुआँ या मंदिर पूजा करने चली जाने लगी। तब उनके परिवार और गाँव वालों का मानना है कि ये सब बूढ़िया का किया धरा है। तभी एक ओझा को बुलाकर लाता है। रात को ओझा मंत्र बड़बड़ाता है। लड़की का बाल पकड़कर कहता है, ‘‘कौन है? जल्दी बोलो!’’ लड़की के कुछ नहीं बोलने पर बाल को जोर से खींचता हुआ कहता है, ‘‘जल्दी बोलो! जल्दी बोलो!……..’’
लड़की दर्द से कहती, ‘‘वह आ रही है।’’
‘‘कौन है?‘‘ लड़की के पिता कहता है।
‘‘एक बूढ़ी औरत है। सफेद साड़ी पहनी हुई है।’’
‘‘चमेली है।’’
‘‘हाँ वही है। हाँ वही है………।’’ कहने लगी।
‘‘वह क्या बोल रही है?’’ ओझा कहता है।
‘‘तुमको मैं खाऊँगी। तुमको मैं खाऊँगी…………….।’’ लड़की बोलती है।
‘‘क्या? क्या? देने से तुझे छोड़ देगी।’’ ओझा
‘‘मैं नहीं छोड़ूँगी। तुमको मैं खाऊँगी……….।’’ लड़की
‘‘चुपचाप बोलो! जो लेना है, वरना अच्छा नहीं होगा। तुम मुझे नहीं जानती हो, बीच गाँव में नचा दूँगा।’’
‘‘एक बकरा, एक सफेद मुर्गा, एक लाल मुर्गा और एक काली बकरी भी।’’
‘‘ये सब देने से जाओगी न!’’
‘‘हाँ, हाँ।’’
‘‘कभी लौटकर नहीं आओगी न! कसम खाओ।’’
‘‘हाँ, मैं कभी नहीं आऊँगी।’’
लड़की का बाल छोड़कर बोलता है, ‘‘देखिए! ये सब तो अभी जुगाड़ नहीं हो सकता है। इसके अलावे और कुछ सामान भी खरीदना पड़ेगा।’’
‘‘ठीक है, कल कर दीजिए।’’ लड़की के पिता।
‘‘हाँ, हाँ, कल हो जायेगा। आप ये सब जुगाड़ करके रखिए। मैं शाम को पहुँच जाऊँगा।’’ कहता ओझा चला जाता है। लड़की इतनी थक गयी कि रात भर सोई रही। ओझा दूसरे दिन बकरा-बकरी, मुर्गा और पाँच हजार पैसा ले लिया। घर जाते वक्त कहा, ‘‘कल एक बार मनोरोग विशेषज्ञ डाॅक्टर से भी दिखा लीजिए। हो सकता है कि डायन अपनी शक्ति से थोड़ा बहुत दिमाग खराब कर दी हो।’’
ओझा के आदेशानुसार सुबह राँची के पागल खाना के डाॅक्टर से दिखा लिया। डाॅक्टर जाँच करने के बाद एक माह की दवा लिखा और कहा, ‘‘एक दिन की दवा रहते ही लेकर आना।’’
एक माह में लड़की स्वस्थ हो गयी। पूर्व की भाँति स्कूल जाने लगी। किंतु परिवार वाले को लगा कि ओझा ने ठीक कर दिया। इसलिए एक माह के बाद भी डाॅक्टर के पास लेकर नहीं गया। दवा समाप्त होने के पन्द्रह दिनों के बाद फिर से वही हरकत करने लगी। लड़की के पिता ओझा के पास चला गया। ओझा आँख बंद कर लिया और कहा, ‘‘साली बुढ़िया! फिर से आ गयी। जब तक बुढ़िया जीवित रहेगी। आपकी मुन्नी को तंग करती रहेगी। आप कुछ भी कर लीजिए।’’
‘‘कोई रास्ता बताइये गुरुजी।’’
‘‘एक रास्ता है।’’
‘‘कौन-सा।’’
‘‘डायन को मार के फेंक देना होगा। ना रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।’’
‘‘ठीक है गुरुजी।’’ कहता चला आता है। गाँव के कुछ लोग चमेली को मारने पर तूले हुये हैं। दस पुरुष मिलकर पहले श्मशान घाट में अग्निकुंड का निर्माण किया। फिर रात के ग्यारह बजे तलवार, टांगी और डंडा लेकर चमेली का घर चला गया। चमेली को जबरन घर से पकड़कर श्मशान घाट ले गया। पहले चमेली के शरीर में तलवार, टांगी और डंडा से बार किया। फिर अग्निकुंड में फेंक दिया। चमेली अंतिम सांस तक बोलती रही। मुझे मत मारो! मैं डायन नहीं हूँ, मैं डायन नहीं हूँ……………..।

लेखक

  • डॉ. मृत्युंजय कोईरी शिक्षा; स्नातकोत्तर हिन्दी पीएचडी0 कहानी संग्रह-मेंड़, राजेश की बैल, एक बोझा धान सम्प्रति-सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

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