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चित्तौरगढ़-वर्णन-खंड-46 पद्मावत/जायसी

जेवाँ साह जो भएउ बिहाना । गढ़ देखै गवना सुलताना ॥ कवँल-सहाय सूर सँग लीन्हा । राघव चेतन आगे कीन्हा ॥ ततखन आइ बिवाँन पहूँचा । मन तें अधिक, गगन तें ऊँचा ॥ उघरी पवँरि, चला सुलतानू । जानहु चला गगन कहँ भानू ॥ पवँरी सात, सात खँड बाँके । सातौ खंड गाढ़ दुइ नाके […]

पद्मावती-नागमती-बिलाप-खंड-47 पद्मावत/जायसी

पदमावति बिनु कंत दुहेली । बिनु जल कँवल सूखी जस बेसी ॥ गाढ़ी प्रीति सो मोसौं लाए । दिल्ली कंत निचिंत होइ छाए सो दिल्ली अस निबहुर देसू । कोइ न बहुरा कहै सँदेसू ॥ जो गवनै सो तहाँ कर होई । जो आवै किछु जान न सोई ॥ अगम पंथ पिय तहाँ सिधावा । […]

रत्नसेन-बंधन-खंड-48 पद्मावत/जायसी

मीत भै माँगा बेगि बिवानू । चला सूर, सँवरा अस्थानू ॥ चलत पंथ राखा जौ पाऊ । कहाँ रहै थिर चलत बटाऊ ॥ पंथी कहाँ कहाँ सुसताई । पंथ चलै तब पंथ सेराई ॥ छर कीजै बर जहाँ न आँटा । लीजै फूल टारिकै काँटा ॥ बहुत मया सुनि राजा फूला । चला साथ पहुँचावै […]

देवपाल-दूती-खंड-49 पद्मावत/जायसी

कुंभलनेर-राय देवपालू । राजा केर सत्रु हिय -सालू ॥ वह पै सुना कि राजा बाँधा । पाछिल बैर सँवरि छर साधा ॥ सत्रु-साल तब नेवरै सोई । जौ घर आब सत्रु कै जोई ॥ दूती एक बिरिध तेहि ठाऊँ । बाम्हन जाति, कुमोदिनि नाऊँ ॥ ओहि हँकारि कै बीरा दीन्हा । तोरे बर मैं बर […]

बादशाह-दूती-खंड-50 पद्मावत/जायसी

रानी धरमसार पुनि साजा । बंदि मोख जेहि पावहिं राजा ॥ जावत परदेसी चलि आवहिं । अन्नदान औ पानी पावहिं ॥ जोगि जती आवहिं जत कंथी । पूछै पियहि, जान कोइ पंथी ॥ दान जो देत बाहँ भइ ऊँची । जाइ साह पहँ बात पहूँची ॥ पातुरि एक हुति जोगि-सवाँगी । साह अखारे हुँत ओहि […]

पद्मावति-गोरा-बादल-संवाद-खंड-51 पद्मावत/जायसी

सखिन्ह बुझाई दगध अपारा । गइ गोरा बादल के बारा ॥ चरन-कँवल भुइँ जनम न धरे । जात तहाँ लगि छाला परे ॥ निसरि आए छत्री सुनि दोऊ । तस काँपे जस काँप न कोऊ ॥ केस छोरि चरनन्ह-रज झारा । कहाँ पावँ पदमावति धारा?॥ राखा आनि पाट सोनवानी । बिरह-बियोगिनि बैठी रानी ॥ दोउ […]

गोरा-बादल-युद्ध-यात्रा-खंड-52 पद्मावत/जायसी

बादल केरि जसौवै माया । आइ गहेसि बादल कर पाया॥ बादल राय! मोर तुइ बारा । का जानसि कस होइ जुझारा॥ बादसाह पुहुमीपति राजा । सनमुख होइ न हमीरहि छाजा॥ छत्तिास लाख तुरय दर साजहिं । बीस सहस हस्ती रन गाजहिं॥ जबहीं आइ चढ़ै दल ठटा । दीखत जैसि गगन घन घटा॥ चमकहिं खड़ग जो […]

गोरा-बादल-युद्ध-खंड-53 पद्मावत/जायसी

मतैं बैठि बादल औ गोरा । सो मत कीज परै नहिं भोरा ॥ पुरुष न करहिं नारि-मति काँची । जस नौशाबा कीन्ह न बाँची ॥ परा हाथ इसकंदर बैरी । सो कित छोड़ि कै भई बँदेरी?॥ सुबुधि सो ससा सिंघ कहँ मारा । कुबुधि सिंघ कूआँ परि हारा ॥ देवहिं छरा आइ अस आँटी । […]

बंधन-मोक्ष; पद्मावती-मिलन-खंड-54 पद्मावत/जायसी

पदमावति मन रही जो झूरी। सुनत सरोवर-हिय गा पूरी ॥ अद्रा महि-हुलास जिमि होई । सुख सोहाग आदर भा सोई ॥ नलिन नीक दल कीन्ह अँकूरू । बिगसा कँवल उवा जब सूरू ॥ पुरइनि पूर सँवारे पाता । औ सिर आनि धरा बिधि छाता ॥ लागेउ उदय होइ जस भोरा । रैनि गई, दिन कीन्ह […]

रत्नसेन-देवपाल-युद्ध-खंड-55 पद्मावत/जायसी

सुनि देवपाल राय कर चालू । राजहि कठिन परा हिय सालू ॥ दादुर कतहुँ कँवल कहँ पेखा । गादुर मुख न सूर कर देखा ॥ अपने रँग जस नाच मयूरू । तेहि सरि साध करै तमचूरू ॥ जों लगि आइ तुरुक गढ़ बाजा । तौ लगि धरि आनौं तौ राजा ॥ नींद न लीन्ह, रैनि […]

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