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नागमती-पद्मावती-विवाद-खंड-36 पद्मावत/जायसी

जाही जूही तेहि फुलवारी । देखि रहस रहि सकी न बारी ॥ दूतिन्ह बात न हिये समानी । पदमावति पहँ कहा सो आनी ॥ नागमती है आपनि बारी । भँवर मिला रस करै धमारी ॥ सखी साथ सब रहसहिं कूदहिं । औ सिंगार-हार सब गूँथहिं ॥ तुम जो बकावरि तुम्ह सौं भर ना । बकुचन […]

रत्नसेन-संतति-खंड-37 पद्मावत/जायसी

जाएउ नागमति नागसेनहि । ऊँच भाग, ऊँचै दिन रैनहि ॥ कँवलसेन पदमावति जाएउ । जानहुँ चंद धरति मइँ आएउ ॥ पंडित बहु बुधिवंत बोलाए । रासि बरग औ गरह गनाए ॥ कहेन्हि बड़े दोउ राजा होहीं । ऐसे पूत होहिं सब तोहीं ॥ नवौं खंड के राजन्ह जाहीं । औ किछु दुंद होइ दल माहीं […]

राघव-चेतन-देस-निकाला-खंड-38 पद्मावत/जायसी

राघव चेतन चेतन महा । आऊ सरि राजा पहँ रहा ॥ चित चेता जाने बहु भेऊ । कबि बियास पंडित सहदेऊ ॥ बरनी आइ राज कै कथा । पिंगल महँ सब सिंघल मथा ॥ जो कबि सुनै सीस सो धुना । सरवन नाद बेद सो सुना ॥ दिस्टि सो धरम-पंथ जेहि सूझा । ज्ञान सो […]

 राघव-चेतन-दिल्ली-गमन-खंड-39 पद्मावत/जायसी

राघव चेतन कीन्ह पयाना । दिल्ली नगर जाइ नियराना ॥ आइ साह के बार पहूँचा । देखा राज जगत पर ऊँचा ॥ छत्तिस लाख तुरुक असवारा । तीस सहस हस्ती दरबारा ॥ जहँ लगि तपै जगत पर भानू । तहँ लगि राज करै सुलतानू ॥ चहूँ खँड के राजा आवहिं । ठाढ़ झुराहिं, जोहार न […]

स्त्री-भेद-वर्णन-खंड-40 पद्मावत/जायसी

पहिले कहौं हस्तिनी नारी । हस्ती कै परकीरति सारी ॥ सिर औ पायँ सुभर गिउ छोटी । उर कै खीनि, लंक कै मोटी ॥ कुंभस्थल कुच,मद उर माहीं । गवन गयंद,ढाल जनु बाहीं ॥ दिस्टि न आवै आपन पीऊ । पुरुष पराएअ ऊपर जिऊ ॥ भोजन बहुत, बहुत रति चाऊ । अछवाई नहिं, थोर बनाऊ […]

पद्मावती-रूप-चर्चा-खंड-41 पद्मावत/जायसी

वह पदमिनि चितउर जो आनी । काया कुंदन द्वादसबानी ॥ कुंदन कनक ताहि नहिं बासा । वह सुगंध जस कँवल बिगासा ॥ कुंदन कनक कठोर सो अंगा । वह कोमल, रँग पुहुप सुरंगा ॥ ओहि छुइ पवन बिरिछ जेहि लागा । सोइ मलयागिरि भएउ सुभागा ॥ काह न मूठी-भरी ओहि देही?। असि मूरति केइ देउ […]

बादशाह-चढ़ाई-खंड-42 पद्मावत/जायसी

बादशाह-चढ़ाई-खंड सुनि अस लिखा उठा जरि राजा । जानौ दैउ तड़पि घन गाजा॥ का मोहिं सिंघ देखावसि आई । कहौं तौ सारदूल धरि खाई ॥ भलेहिं साह पुहुमीपति भारी । माँग न कोउ पुरुष कै नारी ॥ जो सो चक्कवै ताकहँ राजू । मँदिर एक कहँ आपन साजू ॥ अछरी जहाँ इंद्र पै आवै । […]

राजा-बादशाह-युद्ध-खंड-43 पद्मावत/जायसी

इहाँ राज अस सेन बनाई । उहाँ साह कै भई अवाई ॥ अगिले दौरे आगे आए । पछिले पाछ कोस दस छाए ॥ साह आइ चितउर गढ़ बाजा । हस्ती सहस बीस सँग साजा ॥ ओनइ आए दूनौ दल साजे । हिंदू तुरक दुवौ रन गाजे ॥ दुवौ समुद दधि उदधि अपारा । दूनौ मेरू […]

राजा-बादशाह-मेल-खंड-44 पद्मावत/जायसी

सुना साह अरदासै पढ़ीं । चिंता आन आनि चित चढ़ी ॥ तौ अगमन मन चीतै कोई । जौ आपन चीता किछु होई ॥ मन झूठा, जिउ हाथ पराए । चिंता एक हिये दुइ ठाएँ ॥ गढ़ सौं अरुझि जाइ तब छूटै । होइ मेराव, कि सो गढ़ टूटै ॥ पाहन कर रिपु पाहन हीरा । […]

बादशाह -भोज- खंड-45 पद्मावत/जायसी

छागर मेढ़ा बड़ औ छोटे । धरि धरि आने जहँ लगि मोटे ॥ हरिन, रोझ, लगना बन बसे । चीतर गोइन, झाँख औ ससै ॥ तीतर, बटई, लवा न बाँचे । सारस, कूज, पुछार जो नाचे ॥ धरे परेवा पंडूक हेरी । खेहा, गुडरू और बगेरी ॥ हारिल, चरग, चाह बँदि परे । बन-कुक्कुट, जल-कुक्कुट […]

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