राजा-रत्नसेन-सती-खंड-21 पद्मावत/जायसी
कै बसंत पदमावति गई । राजहि तब बसंत सुधि भई ॥ जो जागा न बसंत न बारी । ना वह खेल, न खेलनहारी ॥ ना वह ओहि कर रूप सुहाई । गै हेराइ, पुनि दिस्टि न आई ॥ फूल झरे, सूखी फुलवारी । दीठि परी उकठी सब बारी ॥ केइ यह बसत बसंत उजारा?। गा […]