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राजा-रत्नसेन-सती-खंड-21 पद्मावत/जायसी

कै बसंत पदमावति गई । राजहि तब बसंत सुधि भई ॥ जो जागा न बसंत न बारी । ना वह खेल, न खेलनहारी ॥ ना वह ओहि कर रूप सुहाई । गै हेराइ, पुनि दिस्टि न आई ॥ फूल झरे, सूखी फुलवारी । दीठि परी उकठी सब बारी ॥ केइ यह बसत बसंत उजारा?। गा […]

पार्वती-महेश-खंड-22 पद्मावत/जायसी

ततखन पहुँचे आइ महेसू । बाहन बैल, कुस्टि कर भेसू ॥ काथरि कया हड़ावरि बाँधे । मुंड-माल औ हत्या काँधे ॥ सेसनाग जाके कँठमाला । तनु भभुति, हस्ती कर छाला ॥ पहुँची रुद्र-कवँल कै गटा । ससि माथे औ सुरसरि जटा ॥ चँवर घंट औ डँवरू हाथा । गौरा पारबती धनि साथा ॥ औ हनुवंत […]

राजा-गढ़-छेंका-खंड-23 पद्मावत/जायसी

सिधि-गुटिका राजै जब पावा । पुनि भइ सिद्धि गनेस मनावा ॥ जब संकर सिधि दीन्ह गुटेका । परी हुल, जोगिन्ह गढ़ छेंका ॥ सबैं पदमिनी देखहिं चढ़ी । सिंघल छेंकि उठा होइ मढ़ी ॥ जस घर भरे चोर मत कीन्हा । तेहि बिधि सेंधि चाह गढ़ दीन्हा ॥ गुपुत चोर जो रहै सो साँचा । […]

गंधर्वसेन-मंत्री-खंड-24 पद्मावत/जायसी

राजै सुनि, जोगी गढ़ चढ़े । पूछै पास जो पंडित पढ़े ॥ जोगी गढ़ जो सेंधि दै आवहिं । बोलहु सबद सिद्धि जस पावहिं ॥ कहहिं वेद पढ़ि पंडित बेदी । जोगि भौर जस मालति-भेदी ॥ जैसे चोर सेंधि सिर मेलहिं । तस ए दुवौ जीउ पर खेलहिं ॥ पंथ न चलहिं बेद जस लिखा […]

रत्नसेन-सूली-खंड-25 पद्मावत/जायसी

बाँधि तपा आने जहँ सूरी। जुरे आई सब सिंघलपूरी॥ पहिले गुरुहि देइ कह आना। देखि रूप सब कोइ पछिताना॥ लोग कहहिं यह होइ न जोगी। राजकुँवर कोइ अहै बियोगी॥ काहुहि लागि भएउ है तपा। हिये सो माल, करहु मुख जपा॥ जस मारै कहँ बाजा तूरू। सूरी देखि हँसा मंसूरू॥ चमके दसन भएउ उजियारा। जो जहँ […]

रत्नसेन-पद्मावती-विवाह-खंड-26 पद्मावत/जायसी

लगन धरा औ रचा बियाहू । सिंघल नेवत फिरा सब काहू ॥ बाजन बाजे कोटि पचासा । भा अनंद सगरौं कैलासा ॥ जेहि दिन कहँ निति देव मनावा । सोइ दिवस पदमावति पावा ॥ चाँद सुरुज मनि माथे भागू । औ गावहिं सब नखत सोहागू ॥ रचि रचि मानिक माँडव छावा । औ भुइँ रात […]

पद्मावती-रत्नसेन-भेंट-खंड-27 पद्मावत/जायसी

सात खंड ऊपर कबिलासू । तहवाँ नारि-सेज सुख-बासू ॥ चारि खंभ चारिहु दिसि खरे । हीरा-रतन-पदारथ-जरे ॥ मानिक दिया जरावा मोती । होइ उजियार रहा तेहि जोती ॥ ऊपर राता चँदवा छावा । औ भुइँ सुरग बिछाव बिछावा ॥ तेहि महँ पालक सेज सो डासी । कीन्ह बिछावन फूलन्ह बासी ॥ चहुँ दिसि गेंडुवा औ […]

रत्नसेन-साथी-खंड-28 पद्मावत/जायसी

रत्नसेन गए अपनी सभा । बैठे पाट जहाँ अठ खंभा ॥ आइ मिले चितउर के साथी । सबै बिहँसि कै दीन्ही हाथी ॥ राजा कर भल मानहु भाई । जेइ हम कहँ यह भूमि देखाई ॥ हम कहँ आनत जौ न नरेसू । तौ हम कहाँ, कहाँ यह देसू ॥ धनि राजा तुम्ह राज बिसेखा […]

षट्-ऋतु-वर्णन-खंड-29 पद्मावत/जायसी

पदमावति सब सखी बोलाई । चीर पटोर हार पहिराई॥ सीस सबन्ह के सेंदुर पूरा और राते सब अंग सेंदुरा॥ चंदन अगर चित्र सब भरीं ।नए चार जानहु अवतारीं॥ जनहु कँवल सँग फूली कूईं । जनहुँ चाँद सँग तरई ऊईं॥ धनि पदमावति, धनि तोर नाहू । जेहि अभरन पहिरा सब काहू॥ बारह अभरन, सोरह सिंगारा । […]

नागमती-वियोग-खंड-30 पद्मावत/जायसी

नागमती चितउर-पथ हेरा । पिउ जो गए पुनि कीन्ह न फेरा ॥ नागर काहु नारि बस परा । तेइ मोर पिउ मोसौं हरा ॥ सुआ काल होइ लेइगा पीऊ । पिउ नहिं जात, जात बरु जीऊ ॥ भएउ नरायन बावन करा । राज करत राजा बलि छरा ॥ करन पास लीन्हेउ कै छंदू । बिप्र […]

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