+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

शंका/डॉ पद्मावती

गणेश उत्सव की तैयारियाँ चल रही थी । वह भगवान की मूर्तियाँ बनाता था । मिट्टी की मूर्तियों में जान फूंक देता था । आज अचानक मूर्ति पर काम करते हुए उसके हाथ रुक गए । एक प्रश्न कुछ दिन से मन को मथ रहा था । आज पूछ ही डाला ! “कुछ कहना है…देखो […]

मिलन का रंग/डॉ पद्मावती

“देव रक्षा । पाहिमाम … त्राहिमाम”! वसुंधरा की करुण पुकार पर वरुण लोक कंपकंपा उठा । “प्रभु मेरी विखण्डित काया की पीड़ा समझिए । आपसे बिछोह और सहन नहीं होता । इस तरह यह उपेक्षा, यह विमुखता तो मेरी संतति के विनाश का आह्वान है । जल ही जीवनाधार है प्रभु । मानव की धृष्टता […]

समर्पण/डॉ पद्मावती

“ओह! यह क्या? मैं  पारिजात समर्पित कर रही हूँ पर आपके  शरीर पर ये तुलसी के पत्ते कहाँ से आ रहे हैं ? कहीं ये चाल रुक्मिणी की तो नहीं माधव”? कन्हैया के अधरों की मुस्कान देख सत्याभामा झुंझला उठी । । “ न प्रिये न । तुम हमेशा रुक्मिणी को ही दोषी मानती हो […]

वापसी/डॉ पद्मावती

  दो शब्द : इस सृष्टि की अनमोल विभूति है माँ । माँ शब्द अमृत तुल्य  है । माँ पृथ्वी पर ऐसा वरदान है  जिसको पाने के लिए तीनों लोकों के स्वामी परम पिता परमेश्वर भी  इस भूमि पर मानव रुप में अवतार लेते हैं  । ऐसी ही ममतामय माँ के आँचल से दूर होकर […]

वृक्षारोपण/डॉ पद्मावती

वृक्षारोपण अभियान जोर शोर से चल रहा था । हाल ही में पार्षद बनी बिंद्येश्वरी देवी टीवी रिपोर्टरों और संवाददाताओं को काँख में दबाए अतिशय ऊर्जा से इस अभियान में भाग ले रहीं थी । आजकल वो हर चैनल और अखबार की खबर थीं । आज भी साढे़ बारह बजे कृष्ण नगर कॉलोनी में एक […]

जंग/डॉ पद्मावती  

 चांद थककर सो गया था बादलों की ओट में कुछ क्षणों के लिए ….पर आकाश जगमगा रहा था,  टिमटिमाते अनगिनत सितारों से । चमक ऐसी लुभावनी जितनी भारतीय सेना आधुनिक हथियारों से लेस जगमगा रही थी…पूरी तैयारी के साथ…पूरे जोश से । नीचे जमीन पर घुप्प अंधेरा …इतना कि हाथ को हाथ न सूझे।  । […]

छत्रछाया/डॉ पद्मावती

‘बावली है तू बावली! इत्ती बडी अधिकारी रिक्शे में जाएगी? अरे कार में जाए तू तो कार में  । और तू है कि जिद्द पर अड़ी है? दिमाग तो ठीक है तेरा ? लोग क्या सोचेंगे ये सोच कि मैडम जी टूटे फूटे रिक्शे में ? और…. इन मैडम का बाप रिक्शे वाला? छि…छि…। न…न […]

विस्मृति/डॉ पद्मावती

दो शब्द; प्रकृति की गोद में बसी जन जातियाँ । निष्कपट और साफ दिल ।  आज भी आधुनिकता से दूर नैसर्गिक जीवन जीती हुई। कष्टतर परिस्थितियों को झेलने पर मजबूर । उपेक्षित, अशिक्षित,  अपने संवैधानिक अधिकारों से अनभिज्ञ। इस आदिवासी  समुदाय की महिलाओं की स्थिति तो और भी बदतर । घर बाहर दोनों स्थलों पर […]

मुक्ति/डॉ पद्मावती

जून का महीना .. न बादल न बरसात .. हर तरफ उमस फैली हुई थी … वातावरण में ठहराव था … धूप भी आँख -मिचौनी खेल रही थी । सुमति बाहर बरामदे में आकर अपने गीले बालों को तौलिए से रगड़ रगड़  कर सुखा रही थी । दोपहर के दो  बजे  .. अचानक पोस्ट बाबू […]

 कॉफी/डॉ पद्मावती

दिसंबर का महीना ।  शाम के पाँच बज रहे थे ।  स्टेशन खचा-खच भरा हुआ था । अल्का मद्रास से बेंगलूर कम्पनी की मीटिंग के लिए जा रही थी । वह ट्रेन से बहुत कम यात्रा करती थी लेकिन आज कुछ आवश्यक अनिवार्यताओं के कारण ट्रेन पकड़नी पड रही थी । यहाँ की भीड़ ने […]

×