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गूँगे को मीठा मिल जाये/डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

गूँगे को मीठा मिल जाये, स्वाद  नहीं कहने में आये । आज बहुत ही खुश हूँ प्रीतम,तुम मेरे सपने में आये।  हीरे माणिक शब्द सजाकर,  तुम से पाया आँचल में । बिछुड़े थे हम कहाँ तुम्हारे , करुणा बहती  काजल में । आँख ढरे सुरमा सुषमा से,बूँद जहाँ गलने में आये। गूँगे को मीठा मिल […]

निखर रही है आज कौमुदी/डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

निखर रही है आज कौमुदी, चंद्र पूर्णिमा मोहे तन मन । सुधबुध खोये निशा बावरी, सरस हुआ वसुधा का आँगन । छाया यौवन लहर लहर पर, खोल सखे निदियारी अँखियाँ। सरस मोहनी  छेड़़ रागिनी, हंस  युगल  की प्यारी बतियाँ । नील गगन है मौन साधता,   शाख शाख तन झूमे कानन । सरस हुआ वसुधा का […]

पनघट घट पनिहारी/डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

चैत चली पछुआ अँगनाई,पनघट घट पनिहारी  । खड़ी दुपहरी मन भरमावे,गीत हुए महुआरी ।  ———-गीत हुए महुआरी  ———- काँधे घड़िला शीश धरे पट, डगर मगर कटि बाला । राह निहारे प्यारी गइया, भामिनि हाथ निवाला ।  लाज लसे लोचनि रति हौले,पग झांझर झनकारी । ———-गीत हुए महुआरी  ———– रैन दिवस घड़ि पहर न जाने, जीवट […]

लहर लहर तट रहा झकोरे/डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

लहर लहर तट रहा झकोरे, घूम रहा तूफान निराला । घूम रहा तूफान —– फँसा बटोही नगर डगर तक बना हुआ हैवान निराला । बना हुआ हैवान—- विफर पड़ी आक्रोशित लहरें दिव्य साधना नित होअर्चन । जनधन की भारी है  चिंता, त्राहि मचाये ये परिवर्तन । भृकुटि तानकर खड़ी आपदा, लेना है  संज्ञान निराला । […]

मेघदूत यायावर लेकर/डॉ प्रेमलता त्रिपाठी 

मेघदूत यायावर लेकर , खुशियों का संदेश। शृंग पार से आया न्यासी, अमित लगे परिवेश । श्वेत-श्याम में उलझे नैना, कजरी के  शृंगार । चहुँदिक डोले बादल छौने, क्या मधुबन क्या थार । दूब दूब पर मोती मानिक, भरे धरा के  गोद, पाकर आँचल को हुलसाये,  अम्बर से सित धार । उमड़ घुमड़ नभ से […]

स्वाभिमान है हिन्दी/डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

 पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी ही मंथन चिंतन में, करिए सदा निवेश भृगु पराशर व्यास अंगिरा,शतानंद   सत चित्र ।  ऋषि पुलस्त्य अगस्त्य सहित, नारद विश्वामित्र । ऋषि समग्र आशीष कृपा से, पूर्ण शुद्ध परिवेश।  पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी का विस्तार जहाँ से,भरत भूमि है धन्य । परम […]

मुक्तक/आशीष कुमार पाण्डेय

अपनी सोच को ही  कलम से कागज़ पर उतार देता  हूं, महफिल में मिले वाह वाहियां हमें इसलिए हंसा देता हूं, दिन  रात  जो करता हूं मैं हद से ज्यादा  उद्यम सफर में, खुश रहे परिवार इस लिए बेहिसाब पसीना बहा देता हूं, तुम  साथ दो  यदि  मेरा, मैं  राह   समुंदर  में  बना  दूं, तुम […]

समय चक्र/छाया त्रिपाठी ओझा

धीरे धीरे आँख मूँदकर समय चक्र चलता रहता है।   नित्य कहानी कहते कहते सुख दुख सारे सहते सहते सदियों से मुस्काती सरिता चलती जाती बहते बहते   बंद सीपियों तक में देखो मोती  भी पलता रहता है। समय—–   टूट कभी जाती है डाली फूल तोड़कर हँसता माली गिर जाते पतझड़ में पत्ते अंतस […]

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