कुण्डलियां ‘ठकुरेला’ कविराय/त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सोना तपता आग में, और निखरता रूप। कभी न रुकते साहसी, छाया हो या धूप।। छाया हो या धूप, बहुत सी बाधा आयें। कभी न बनें अधीर, नहीं मन में घबरायें। ‘ठकुरेला’ कविराय, दुखों से कभी न रोना। निखरे सहकर कष्ट, आदमी हो या सोना।। *** चलते चलते एक दिन, तट पर लगती नाव। मिल […]