कई मर्ज की है दवा, अपनेपन का भाव।
खुश रहना जो चाहते, सबसे रखें लगाव।।-1
मां तुलसी-सी पूज्य हैं, पिता बरगदी छांव।
भाव-करों से रोज ही, पूजें उनके पांव।।-2
सारा जग रोशन हुआ, रात हुई गुलजार।
एक दीप के सामने, गया अंधेरा हार।।-3
एक झोपड़ी तोड़कर, महल बनाते चार।
करते हैं भू माफिया, कपटी कारोबार।।-4
भरी कुटिलता भाव में, मुख पर है मुस्कान।
बहुत कठिन है आजकल, मानव की पहचान।।-5
मेल जोल संवाद से, सिंचित शुभ व्यवहार।
रिश्तों में पैदा करे, प्यार प्रीत मनुहार।।-6
नेता नीति विहीन हो, भ्रष्ट अगर सरकार।
तब निश्चित ही देश का, होता बंटाधार।।-7
रिश्ते हैं सब झूठ के, मिथ्या यह संसार।
जीवन के दिन चार में, प्रभु ही सच्चा यार।।-8
कांटों के सानिध्य में, जैसे खिले गुलाब।
जीना दुख के साथ में, सीखें आप जनाब।।-9
भीगी-भीगी देह है, मन में बढ़ती प्यास।
सावन की बरसात में,जगी मिलन की आस।।-10
बूढ़ी आंखें बाप की, हुईं तभी लाचार।
जब बेटों ने खींच दी, ऑंगन में दीवार।।-11
भोली सूरत देखकर, कभी न भटकें राह।
दरिया की चुप्पी सदा, नहीं बताए थाह।।-12
बिनोदानंद झा