नेह बहन का ढुलक जब, झरे नयन के पार ।
भाई का तब देखिए, झांक आँख से प्यार ।।-1
मानव के प्रति प्रेम का, जिसके मन में वास ।
आता है कर्त्तव्य का, बोध उसी के पास ।।-2
मिला बड़ों से जब मुझे, प्रेम सहित आशीष ।
मन मेरा जो रंक था, पल में हुआ रईस ।।-3
हल्के-हल्के प्यार की, ज्यों-ज्यों सुलगी आग ।
मन की कलियां खिल उठीं, महके दिल के बाग ।।-4
बगिया में प्रेमी मिले, पहली – पहली बार ।
कलियों की बांछें खिलीं, मादक हुई बयार ।।-5
भरी सभा में प्रेम ने, दी पहरों को मात।
प्रेमी बातें कर गए, बिना किए ही बात।।-6
प्रेमी ने परदेश से, की प्रेमी की याद ।
हिचकी आई कर गई, प्रेमी से संवाद ।।-7
मिला निवेदन प्रेम का, पहली-पहली बार ।
मन-मन्दिर में घंटियाँ, बजने लगीं हजार ।।-8
लड़ा प्रेमियों के लिए, दिया स्वयं बलिदान ।
बेलेन्टाइन ‘सतं -पद’, पाकर हुआ महान ।।-9
न्याय नीति की बात हो, मिटें भेद के भाव ।
जन मानस में प्रेम हो, टल जाएं टकराव ।।-10
प्रेम हृदय का विषय है, विषय-रहित, निष्काम ।
विषय, वासना, काम ने, प्रेम किया बदनाम ।।-11
जहां-जहां सींचा गया, प्रेम और अनुराग ।
सुलग नहीं पाई कभी, वहां कलह की आग ।।-12
डॉ. जे. पी. बघेल