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नेह बहन का ढुलक जब/डॉ. जे. पी. बघेल

नेह बहन का ढुलक जब, झरे नयन के पार ।

भाई का तब देखिए, झांक आँख  से  प्यार ।।-1

मानव के प्रति प्रेम का, जिसके मन में वास ।

आता  है  कर्त्तव्य का, बोध  उसी  के पास ।।-2

मिला बड़ों से जब मुझे, प्रेम सहित आशीष ।

मन  मेरा  जो रंक था, पल  में  हुआ  रईस ।।-3

हल्के-हल्के  प्यार  की, ज्यों-ज्यों  सुलगी  आग ।

मन की कलियां खिल उठीं, महके दिल के बाग ।।-4

बगिया में प्रेमी मिले,  पहली – पहली  बार ।

कलियों की बांछें खिलीं, मादक हुई बयार ।।-5

भरी सभा में प्रेम ने, दी पहरों को मात।

प्रेमी बातें कर गए, बिना किए ही बात।।-6

प्रेमी ने परदेश से, की  प्रेमी  की  याद ।

हिचकी आई कर गई, प्रेमी  से  संवाद ।।-7

मिला निवेदन प्रेम का, पहली-पहली बार ।

मन-मन्दिर में घंटियाँ, बजने  लगीं  हजार ।।-8

लड़ा प्रेमियों के लिए, दिया स्वयं बलिदान ।

बेलेन्टाइन ‘सतं -पद’, पाकर हुआ महान ।।-9

न्याय नीति की बात हो, मिटें भेद के भाव ।

जन मानस में प्रेम हो, टल जाएं  टकराव ।।-10

प्रेम हृदय का विषय है, विषय-रहित, निष्काम ।

विषय, वासना, काम ने,  प्रेम  किया  बदनाम ।।-11

जहां-जहां  सींचा  गया, प्रेम  और  अनुराग ।

सुलग नहीं पाई कभी, वहां कलह की आग ।।-12

डॉ. जे. पी. बघेल

लेखक

  • डॉ. जे. पी. बघेल माता : स्व. श्रीमती अमृती देवी पि ता : स्व. श्री वासदेव बघेल जन्मतिथि : 12/08/1954 शिक्षा : एम.एस.सी. (गणित), एम. ए. हिंदी, पत्रकारिता का पीजी डिप्लोमा, पी.एच.डी. । जन्म : हाथरस (उ. प्र.) के सीस्ता गाँव में। लेखन : गद्य एवं पद्य की विभिन्न विधाओं में। प्रकाशन : स्वप्न और समय, घुटने की पीर, भारत के धनगर, अजपथ के कीर्ति- पुरुष (ऐतिहासिक पुस्तक) , संस्कृति के

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