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महकती जिन्दगी/कीर्ति श्रीवास्तव

वो हंसी ख्वाब
वो महकती जि़न्दगी
तेरे आने से लगे
चहुँ ओर
रोशनी कितनी

बिना जि़क्र के ही
रहता तू ख्य़ालों में मेरे
नहीं जानते थे
होंगे कभी बेबस इतने
तेरे लिए

फिर भी सोच ले
एक बार
यदि साथ
चलना है मेरे
तो दोस्तों की
भीड़ में मिलेंगे
दुश्मन भी कई

कीर्ति श्रीवास्तव

लेखक

  • कीर्ति श्रीवास्तव, जन्म स्थान-भोपाल, भारत के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, साहित्य समीर 'दस्तक' मासिक पत्रिका का संपादन व विभोर प्रकाशन का संचालन

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