बारिश की बूंदों से
भींगती है धरा
माटी की खुशबू से
मन हुआ बावरा।
प्रेम की भाषा को
पंख नए लग गए
यादों के बादल में
प्रीतम मन बस गए
मन में बस उठी ललक
होता संग सजन जरा।
माटी की खुशबू से
मन हुआ बावरा।
जीवन की क्यारी में
फूल नए खिल गए
बारिश की रिमझिम में
पैर भी थिरक गए
नाचे मन ठुमक-ठुमक
रंग गई है धरा।
माटी की खुशबू से
मन हुआ बावरा।
पर्वत ने बादल का
ओढ़ लिया आँचल
सपनों से कोहरे की
छट गई चादर
सावन की रिमझिम से
हो रहा चमन हरा।
माटी की खुशबू से
मन हुआ बावरा।
कीर्ति श्रीवास्तव
मन हुआ बावरा/कीर्ति श्रीवास्तव