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प्यार की परिभाषा/कीर्ति श्रीवास्तव

उस दिन जब
तुमने थामा था हाथ मेरा
खुशी की सीमा
न थी मेरी

मैंने ही सिखाई तुम्हें
प्यार की यह परिभाषा
कि प्यार जीवन भर
साथ निभाने का नाम है
जानते ही उस अहसास को
तुम छोड़ मेरा हाथ
आगे निकल गये

जान नहीं पायी और
पहचान भी नहीं पायी
तेरी बदली हुई उस
प्यार की परिभाषा को
बिना प्रश्न किये
उत्तर की तलाश में
तेरे पीछे आज तक बस
उस उम्मीद से चलती जा रही हूँ

कि जब बदलेगा कोई
तेरी बनाई प्यार की परिभाषा को
तो तेरे कदम थमेंगे जरूर
और मैं चलते-चलते
तेरी हमकदम बन तेरे सँग
खड़ी होंगी और निभाऊँगी
अपनी प्यार की परिभाषा को….।

कीर्ति श्रीवास्तव

लेखक

  • कीर्ति श्रीवास्तव, जन्म स्थान-भोपाल, भारत के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, साहित्य समीर 'दस्तक' मासिक पत्रिका का संपादन व विभोर प्रकाशन का संचालन

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