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मुश्किल सफ़र हुआ है/मो. शकील अख़्तर

तेरे बदन‌ का दहकता गुलाब देखूंगा
लबों की प्यास छलकती शराब देखूंगा

जबीं से होंटों का मुश्किल सफ़र हुआ है तमाम
किताब ए जिस्म के अब सारे बाब देखूंगा

हया के रंग में डूबा अगर तुझे देखूं
गुनाह गार नज़र से सवाब देखूंगा

ऐ मेरी हसरत ए दिल शोखियां न यों दिखला
वगरना तुझ को मैं ज़ेरे इताब देखूंगा

मजाल ए गुफ़्तगू पा कर भी दिल है मुहर ब लब
जिगर ‌ को कैसे मैं ग़फ़्लत मआब देखूंगा

खड़े हैं किस लिए ये ख़्वाब मेरे सिरहाने
ख़ला में आंखें हैं तो कैसे ख़्वाब देखूंगा

ख़िरद जुनूं से नहीं मशवरे की कोशिश कर
मैं इरतिक़ा ए शग़फ़ बेहिसाब देखूंगा

अभी बहार है तुझ पे मना ले जश्ने शबाब
कभी उरूज को मैं ग़र्क़े आब देखूंगा

मैं आगही ए मुहब्बत के अब उरूज पे हूं
तो ख़ाक ए इश्क़ में भी आफ़्ताब देखूंगा

जहां पे दो दो फ़रिश्ते हों हम रकाब अख़्तर
वहां क्या ख़ाक मैं लुत्फ़ ए शबाब देखूंगा

मो. शकील अख़्तर

मआनी

इताब – ग़ुस्सा
मुहर ब लब – ख़ामोश
ग़फ़लत मआब – ग़फ़लत करने वाला
ख़िरद – अक़्ल
इरतिक़ा – तरक़्की
शग़फ़ – बहुत मुहब्बत
आगही – वाक़फ़ियत
उरूज – बुलंदी
हम रकाब

लेखक

  • संक्षिप्त परिचय नाम : मो. शकील अख़्तर तख़ल्लुस :अख़्तर जन्म : 04.02.1955 पता: उर्दू बाज़ार ,दरभंगा           बिहार 846004 कार्य :  सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक रचना: विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में                 प्रकाशित            दो साझा ग़ज़ल संग्रहों में प्रकाशित  कई ग़ज़लें           एक ग़ज़ल संग्रह " एहसास की ख़ुशबू" नाम से,            जिज्ञासा प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित

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