सपनों को जीवन दे बैठा/राहुल द्विवेदी ‘स्मित’
प्रेम यज्ञ की आहुति बनकर, मैं जीवन का शिखर हो गया। तुम जीकर रह सके न जीवित, मैं मरकर भी अमर हो गया।। सुलग रही हैं अब तक आहे, जिनको तुमने सुलगाया था यों तो है उपहार तुम्हारा, किन्तु आँच तुम सह न सकोगे। जिस एकाकी निर्जन वन में, मैंने काटी उमर विरह की उसमें […]