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हिन्दी और महिला साहित्यकार/अलका शर्मा

हजारों वर्षों तक अवहेलना की बलि वेदी पर चढी हुई महिलाओं ने आज के युग में अपनी सामर्थ्य को पहचानकर प्रगति पथ पर आगे क़दम बढ़ाए हैं। कोई भी क्षेत्र हो अपनी योग्यता को साबित किया है। साहित्य के क्षेत्र में भी महिलाएं पीछे नहीं हैं।इस क्षेत्र में भी अपने सामर्थ्य को सिद्ध कर रही है। साहित्य की कोई भी विधा हो, महिलाओं से अछूता नहीं रहा है। स्त्री सरोकार, सहनशीलता, संघर्ष, प्रेम और चिंता की कलात्मक अभिव्यक्ति का नाम है।

      यह नारियों की विडंबना रही है कि प्राचीन काल से ही 

पुरुष-सत्तात्मक समाज में अपनी अभिव्यक्तियों को बेबाक तरीके से नहीं रख पाई। उसे अपने परिवार और समाज का निरादर झेलना पड़ा। मीराबाई को तो विषपान ही करा दिया गया। नारियों का दबा हुआ स्वर रुढिवादिता की चादर में लिपटा हुआ दम तोडता रहा। मीराबाई ने श्री कृष्ण जी के प्रेम में पद लिखे जो समकालीन लोगों के गले से नहीं उतरे तथा मीराबाई के लिए कष्टों का कारण बन गये। परंतु कालांतर में वही पद भक्ति काल की पहचान बनकर आज घर घर में गाये जातें हैं। वे श्री कृष्ण से अपने प्रेम को नि:स्वार्थ भाव से स्वीकार कर कहती है– 

             मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय

             जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई

मीराबाई जैसी विरह वेदना और कसक शायद ही अन्य कवयित्री में मिले।

           हे री मैं तो प्रेम दीवानी,मेरा दर्द ना जाने कोय

           दर्द की मारी बन बन बोले,वैद मिला नहीं कोय

कश्मीर की कवयित्री लल्लेश्वरी की कविताएं भी घर घर में गायी जाती थी परंतु अब उनकी कविताओं का कोई अस्तित्व ही नहीं है। कबीर दास जी के समान ही उनकी पत्नी लोई भी पद रचना किया करती थी। परंतु उनके पदों का कबीरदास जी समान किसी ने संकलन नहीं किया। तुलसीदास जी के साथ ही उनकी पत्नी रत्नावली भी पदों की रचना करती थी परंतु इतिहास में कुछ भी दर्ज नहीं है। हिन्दी साहित्य में छत्र वरि, विष्णु कुंवर,राय प्रवीण तथा ब्रजभाषी अनेक महिला कवयित्रियों के दर्शन होते हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।एक पद में वे श्री कृष्ण के प्रति अपनी व्याकुलता का वर्णन करती है– 

    निर्मोही कैसो हियौ तरसावै

   पहिले झलक दिखाव कै हमको, अब क्यों देगि न आवै

    कब सौ तडफत तेरी सजनी,वाको दर्द ना जावे 

चरणदास की शिष्या सहजोबाई ने भी उत्तम भावों की अभिव्यक्ति की है– 

           बाबा नगरु बजाओ

ज्ञान दृष्टि सुं घट में देखों,सुरति निरति लौ दावों

पांच मारि मन बसकर अपने, तीनों ताप नसावौ

            एक नाम आता है ताज का। हालांकि वे एक मुसलमान थी परंतु श्री कृष्ण की प्रेम दीवानी थी। ताज अपने पदों के माध्यम से श्री कृष्ण जी के चरणों में मन,धन समर्पित करने को उत्सुक हैं।

       सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी तुम

       दस्त औ बिकानी, बदनामी भी सहूंगी मैं

       देवपूजा ठानी हो नमाज है भुलानी

       नन्द के कुमार,कुरबान तेरी सूरत पे

हो तो मुसलमानी, हिन्दवानी ही रहूंगी मैं

ताज के पश्चात कवयित्री शेख का नाम आता है। आधुनिक काल की बात करें तो हर विधा में अपनी लेखनी चलाकर महिलाओं ने अप्रतिम साहित्य पांडित्य का परिचय दिया। इनमें अग्रणी नाम सुभद्रा कुमारी चौहान का आता है जिन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर कविता लिखकर इतिहास रच डाला।

     सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

     बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी

     गुम हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी

     दूर फिरंगी को करने की, सबने मन में ठानी थी

     बुंदेले हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

     खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

इनके पश्चात छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा जी है जिनकी लेखनी ने साहित्य की अनमोल विधाएं लिखी। नारी सुलभ विषयों पर उन्होंने बहुत सुंदर आलेख प्रस्तुत किए। 

      मैं नीर भरी दुःख की बदरी जैसी कालजई रचना को कौन भूल सकता है। उनका प्रकृति के प्रति प्रेम उनकी रचनाओं में स्पष्टतया दृष्टिगोचर है। विरह की वेदना उनकी कविताओं में दिखाई देती है। उनकी करुणातुर प्रार्थना की बानगी देखिए।

      जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करुणा कितने संदेश,पथ में बिछ जाते बन पराग

गाता प्राणों का तार तार, अनुराग भरा उन्माद राग 

आंसू लेते वे पद पखार, जो तुम आ जाते एक बार

          वे जीवन के शून्य क्षणों में विकल हो गा उठती है

          अलि! कैसे उनको पाऊं

ये आंसू बनकर भी मेरे, इस कारण ढल भले जाते

आजादी के समय जो स्वर साहित्य में उभरे , उसमें देशकालिक परिस्थितियां और देशप्रेम की अभिव्यक्ति साफ परिलक्षित होती है। महिला साहित्यकारों के द्वारा रचित अमिट साहित्य समाज को प्राप्त हुआ।

    आधुनिक महिला साहित्यकारों ने अपने कर्तव्यों के साथ ही अपने अधिकारों को पहचानकर उत्कृष्ट साहित्य सृजन किया और प्रत्येक विधा में अपनी लेखनी चलाकर अपनी अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित किया ही साथ ही अनुपम साहित्य निर्माण किया। आधुनिक महिला साहित्यकारों में महाश्वेता देवी, शोभा डे,सुमित्रा कुमारी सिन्हा, मृदुला गर्ग, मृणाल पांडे, अमृता प्रीतम ममता कालिया, कृष्णा सोबती,मन्नू भंडारी, रमणिका गुप्ता, रजनी पणिक्कर,शची रानी अरुंधती राय इत्यादि का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है।

           आधुनिक महिला साहित्यकार अपनी बेबाक अभिव्यक्तियों के लिए जानी जाने लगी है। 

          उबल रही है खून में

          जुनून की कहानियां

          नयी दिशा दिखा रही है

          वक्त की निशानियां

          हवा सी घूम घूमकर

          घटा सी झूम झूमकर

          अपने निशा बनाने

          चल पडी है नारियां

स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश

लेखक

  • अलका शर्मा पद...सहायक अध्यापिका कार्यस्थल.... कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय भूरा, कैराना, शामली अध्यापन के क्षेत्र में--- आदर्श अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित साहित्य के क्षेत्र में ---- पिछले 30 वर्षों से अनवरत लेखन कार्य अमर उजाला एवं दैनिक जागरण के पाठकनामा स्तंभ में दस वर्ष पूर्व तक लगातार लेखन। सम्मान पत्र--- लेखन के क्षेत्र में लगभग 500 प्रशस्तिपत्र। प्रकाशित पुस्तकें... रत्नावली (साझा लघुकथा सग्रंह) लघुकथा संग्रह ( साझा संकलन) प्रकाशाधीन उपवन ( काव्य संग्रह)

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