हूं अगर अयोध्या का वासी
हरिद्वार नही लिख पाऊंगा
जब घर में बच्चे भूखे हों
श्रृंगार नही लिख पाऊंगा ।।
गोरखपुर के स्टेशन पर
कुछ बच्चे जीवन काट रहे
बस ढूंढ ढूंढ कर कूड़े में
खाने की पत्तल चाट रहे
मै गाली की सौगातों को
उपहार नही लिख पाऊंगा ।।
माँ सरयू के पावन तट पर
थी एक भिखारन को देखा
वह कई दिनों से भूखी थी
हाथों की देख रही रेखा
जो भूख से मरते हैं उनको
बीमार नही लिख पाऊंगा ।।
पूंजीपतियों के कर्ज माफ
जी एस टी है शमशानों पर
खा रही सियासत मालपुआ
हर गम का बोझ किसानों पर
कुछ भी हो जाये सत्ता के
अनुसार नही लिख पाऊंगा ।।
चन्द्रगत भारती
जब घर में बच्चे भूखे हों/चन्द्रगत भारती