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जब घर में बच्चे भूखे हों/चन्द्रगत भारती

हूं अगर अयोध्या का वासी हरिद्वार नही लिख पाऊंगा जब घर में बच्चे भूखे हों श्रृंगार नही लिख पाऊंगा ।। गोरखपुर के स्टेशन पर कुछ बच्चे जीवन काट रहे बस ढूंढ ढूंढ कर कूड़े में खाने की पत्तल चाट रहे मै गाली की सौगातों को उपहार नही लिख पाऊंगा ।। माँ सरयू के पावन तट […]

जानते सब धर्म आँसू/धीरज श्रीवास्तव

जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। चाँद पर हैं ख्वाब सारे हम खड़े फुटपाथ पर! खींचते हैं बस लकीरें रोज अपने हाथ पर! क्या करे ये ज़िन्दगी भी आँख के हैं कर्म आँसू। जानते सब धर्म आँसू। वेदना के मर्म आँसू। आज वर्षों बाद उनकी याद है आई हमें! फिर वही मंजर दिखाने […]

घर का कोना कोना अम्मा/धीरज श्रीवास्तव

अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा । सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा । खेत और खलिहान बिक गये इज्जत चाट रही माटी ! अलग अलग चूल्हों में मिलकर भून रहे सब परिपाटी ! नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा । सन्नाटे में बिखर गया […]

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