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बदल दिया परिदृश्य गाँव का/राहुल द्विवेदी स्मित’

  बदल दिया परिदृश्य गाँव का, फैशन की अंगड़ाई ने। खेत बेंचकर पल्सर ले ली, बुद्धा और कन्हाई ने।। मुन्नी जीन्स पहनकर घूमे, लौटन की फटफटिया पर। सेल्फी लेती नयी बहुरिया, द्वारे बैठी खटिया पर। लाज, शर्म, घूघट, खा डाला, इस टीवी हरजाई ने।। धोती-कुर्ते संदूको में, धूल समय की फाँक रहे। कोट पैंट सदरी […]

सौंप जो मुझको गये थे/राहुल द्विवेदी स्मित’

सौंप जो मुझको गये थे, क्षण कभी अनुराग के तुम मैं उन्हीं सुधियों के’ कोमल, गीत गाता चल रहा हूँ जब कभी विश्वास डोले, मीत मुड़कर देख लेना।। कब भला आसान होता, आग साँसों की बुझाना। सागरों का नीर खारा, नित्य पीना, मुस्कुराना। किन्तु तुम लेकर गये थे, जो वचन उसके लिए ही, कहकहों में […]

छोड़ प्रलय के राग पुराने/राहुल द्विवेदी स्मित’

छोड़ प्रलय के राग पुराने, चलो सृजन के गान सुनायें। बैठ रात की इस चौखट पर, आओ गीत भोर के गायें।। किसने फूँकी सारी बस्ती, यह विचार का विषय नहीं है। कितने घर, दालान जल गये, चर्चाओं का समय नहीं है। इस विनाश के दामन में ही, नव निर्माण छुपा होता है विध्वंसों की राख […]

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