जरूरत हाथ जोड़े/सुनील त्रिपाठी
जरूरत हाथ जोड़े सैकड़ों दुत्कार सहकर फिर खड़ी है, द्वार पर ऋण के, जरूरत हाथ जोड़े। लत लगी जब से परिश्रम को नशे की, भूख खाली पेट लेटी, तिलमिलाती। बोझ पलकों पर उठाए, भोर जागे, लौटती है सांझ हर दिन, लड़खड़ाती। दाल आटा तेल सब्जी सब नदारद, नाक भौं छूँछी रसोंई भी सिकोड़े। काँपता असमर्थता […]