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Year: 2023

श्रेष्ठ चरित्र ही देश का चित्र बदल सकता है/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

बाल साहित्य मेरी दृष्टि में वही उत्तम है जिसे बड़ों के साथ बच्चे भी अधिक संख्या में पढ़ना पसंद करें| उनकी जिज्ञासा और रुचि हो उस साहित्य को पढ़ने में और यह तभी संभव है जब उसमें कुछ नवीनता और रोचकता होगी | यह सच है कि बाल साहित्य में बाल संसार मुखरित होना चाहिए, […]

घरानों की परम्परा/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

हस्तिनापुर साम्राज्य में आज बहुत सरगर्मी है। महल के बाहर कई महिलाएं मदिरापान और द्युत के विरोध में नारे बाजी कर रही थीं | विरोध के स्वर रनिवास तक पहुंचे | “सेविका ! पता करो बाहर किस बात को लेकर शोर मचा है ?” विश्रामकक्ष में विश्राम कर रही द्रोपदी ने पंखा झल रही सेविका […]

धरती की बेटी/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

“क्या री ! सारा दिन यहाँ -वहाँ कूद मचाती रहती है पोरी।“ सकू ने बेटी शेवंती को डाँटते हुए कहा | “अरे ! आई सोनी और मंजुला के संग खेत में गई थी।“ शेवंती बोली | “बस हुआ तेरा रोज – रोज खेत में कूदना फांदना। शेवन्ती, अब तू बड़ी हो गई है, घर पर […]

बुलबुल/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

यात्रियों से ठसाठस भरी बस में मेरी निगाह अपने लिए थोड़ी सी जगह  तलाश रही थी। शायद कहीं टिकने भर की जगह मिल जाय। ताकि बार बार लगे वाले ब्रेक और उससे होने वाली उलझनों से बच सकूँ। हम महिलाओं की समान अधिकारों की लड़ाई ने पुरुषों के मन में हमारे प्रति प्रतिद्वंद्विता का भाव […]

सच में शक्ति अकूत/डॉ. बिपिन पाण्डेय

कैसे दें दुनिया को बोलो, पक्के ठोस सबूत, सच में शक्ति अकूत! चौखट पर जाने वाले को, धमकाता कानून? होकर बरी घूमते दोषी, होता सच का खून। लथपथ बेबस बना हुआ है जग में सत्य अछूत। अनुल्लंघ्य लगते हैं सच को, सुन्दर से मेहराब। गली-गली में भटक देखता, निज प्रसार के ख्वाब। नहीं टूटते कभी […]

समय ने करवट/डॉ. बिपिन पाण्डेय

जिसके हिस्से में रहती थी हर पग पर दुश्वारी, स्वप्नों के बटुवे में उसके आई दुनिया सारी। शिक्षा के झोंके ने उलटा परंपरा का घूँघट। रही दिखाती आदिकाल से जो अपनी मुस्तैदी, चूल्हे-चौके तक हो सीमित बनी घरों में कैदी। साथ सड़क के दौड़ लगाती, रोजाना अब सरपट। अबला समझ दिखाया सबने अपना रूप घिनौना, […]

बदल गए है सब प्रतिमान/डॉ. बिपिन पाण्डेय

बदल गए है सब प्रतिमान अस्ताचल में सच का सूरज हुआ झूठ का नवल विहान, त्याज्य हुआ पंचामृत पोषक मैला लगता गंगा नीर, तीर्थाटन है सैर-सपाटा घूम-घूम खींचें तस्वीर। नागफनी की पूजा होती तुलसी झेल रही अपमान। हाय-बाय पर हम आ पहुँचे बंद नमस्ते और प्रणाम, सिसक रहा है दौर दुखी हो फैशन के कारण […]

द्रुपद सुता की साड़ी खींचें/डॉ. बिपिन पाण्डेय

सज्जनता के जेवर रास नहीं आते दुनिया को सज्जनता के जेवर। फिकरा कसती रहती राहें अपने कहते बुजदिल, खून जोंक-सा चूसा करती रोज अनोखी मुश्किल। धूर्त भेड़िए दिखलाते हैं अपने तीखे तेवर। पूज्य तिरस्कृत जब होता है निंदित जाता पूजा, बाज बना वह भरे उड़ाने सच में होता चूजा। सुरसा जैसा दुर्जनता का बदला दिखे […]

बँधी हुई खूँटे से नावें/डॉ. बिपिन पाण्डेय

बहरे हैं चलने वाले साथ सभी जब अंधे, गूँगे, बहरे हैं, कैसे पूरे होंगे जो भी देखे स्वप्न सुनहरे हैं। बँधी हुई खूँटे से नावें खाती हैं तट पर हिचकोले, उत्ताल तरंगें ले जाएँगी उस पार नहीं ऐसे भोले। कैसे साथ चले परछाईं जब हम बैठे ठहरे हैं। दुर्दमनीय हुई है पीड़ा दम साधे बैठी […]

मक्कारी की रोटी खाता/डॉ. बिपिन पाण्डेय

समय बड़ा अलबेला है ता – ता थैया खूब नचाए, समय बड़ा अलबेला है। कहीं जेब में बोझिल बटुआ, कहीं न कौड़ी – धेला है। कहीं दौड़ता चीते – सा वह कहीं हाथ पर बंद घड़ी। धमा-चौकड़ी कहीं हो रही, और कहीं है हाथ छड़ी। इस दुनिया में अरमानों का, कैसा अजब झमेला है। भागम-भाग […]

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