सत्कर्मो की सोच जहाँ है,
वहीं सुवन्दित राम हैं।
जहाँ जहाँ मर्यादा है बस, वहीं उपस्थित राम हैं ।।
निश्छल, निर्मल, उज्ज्वल उर हो, पावन धड़कन हो जिसमें।
अटल प्रबल निश्चय हो जिसका, तनिक न विचलन हो जिसमें।।
दृढ़ निश्चय प्रणबद्ध जहाँ है, कृतसंकल्पित राम हैं।
जहाँ जहाँ मर्यादा है बस, वहीं उपस्थित राम हैं।।
पर पीड़ा से उर विचलित हो, अश्रु बहें मन पिघल उठे।
जन-जन की पीड़ा हरने का, भाव सहज ही मचल उठे।।
समझो उसके मन-मंदिर में सर्वसुपूजित राम हैं,
जहाँ जहाँ मर्यादा है बस, वहीं उपस्थित राम हैं।।
पले जहाँ निःस्वार्थ भावना, परहित चिन्तन-रत मन हो।
जन-जन की पीड़ा से आहत, साधु-सन्त हर सज्जन हो।।
अंकुर जहाँ नेह का पुष्पित,
वहीं अंकुरित राम हैं।
जहाँ जहाँ मर्यादा है बस, वहीं उपस्थित राम हैं।।
मानस सरयू जल सा निर्मल, चिन्तन में सनातन है।।
भाव सुमन के शुभ सौरभ से, सुरभित मन का उपवन है।।
शाख-शाख के हर पल्लव में,
सदा पल्लवित राम हैं।
जहाँ जहाँ मर्यादा है बस, वहीं उपस्थित राम हैं।।
सर्वसुपूजित राम हैं/गीत/नन्दिता शर्मा माजी
