कल्कि के धनुष की अभी, टंकार शेष है,
कितनी ही सुताओं का, प्रतिकार शेष है,
तीर, तलवारों से अभी श्रृंगार शेष है,
शस्त्र उठा लो बेटियों, संहार शेष है,
अंहकारियों के माथ का अहंकार शेष है,
माँ, बहन, बेटियों की, हुंकार शेष है,
निर्भया की अस्थियों में, अंगार शेष है,
शस्त्र उठा लो बेटियों, संहार शेष है,
पायलों में स्वाधीनता की झंकार शेष है,
चूड़ियों में हौंसलों की, खनकार शेष है,
नार के नखों में अभी धार शेष है,
शस्त्र उठा लो बेटियों, संहार शेष है….
आत्मरक्षा के लिए यलगार शेष है,
मर्दानियों की जय का उच्चार शेष है,
हर वार के बचाव में पलटवार शेष है,
शस्त्र उठा लो बेटियों, संहार शेष है….
संहार शेष है/कविता/नन्दिता शर्मा माजी
