लेखक की सैर/कुण्डलिया/नन्दिता माजी शर्मा

लेखक निकला हाट में, सोचा कर लूं सैर।
यारी सारी खो गई, आया लेकर बैर।।
आया लेकर बैर, प्रीति के पल्लव खो कर।
लौटा करके सैर, बैर के अंकुर बो कर।।
लेकर अपना जाल, खड़े पग-पग हैं भेदक।
अपने सपने छोड़, इन्हीं से लड़ता लेखक।।
लेखक की सैर/कुण्डलिया/नन्दिता माजी शर्मा

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