यह प्यासों की प्रेम सभा है/गीत/गोपालदास नीरज

यह प्यासों की प्रेम सभा है यहाँ सँभलकर आना जी
जो भी आये यहीं किसी का हो जाये दीवाना जी।

ऐसा बरसे रंग यहाँ पर
जनम-जनम तक मन भींगे
फागुन बिना चुनरिया भींगे
सावन बिना भवन भींगे
ऐसी बारिश होय यहीं पर बचे न कोई घराना जी।
यह प्यासों की प्रेम सभा है…

यहाँ न झगड़ा जाति-पाँति का
और न झंझट मज़हब का
एक सभी की प्यास यहाँ पर
एक ही बस प्याला सबका
यहीं पिया से मिलना हो तो परदे सभी हटाना जी।
यह प्यासों की प्रेम सभा है…

यहाँ दुई की सुई न चुभती
घुले बताशा पानी में
पहने ताज फकीर घूमते
मौला की रजधानी में
यहाँ नाव में नदिया डूबे, सागर सीप समाना जी
यह प्यासों की प्रेम सभा है…

यहाँ न कीमत कुछ पैसे की
कीमत सिर्फ़ सुगंधों की
छुपे हुए हैं लाख रतन
इस गुदडी में पैबन्दों की
हर कोई बिन मोल पियेगो खुला यहाँ मयखाना जी
यह प्यासों की प्रेम सभा है…

चार धाम का पुण्य मिले
इस दर पर शीश झुकाने में
मजा कहाँ वो जीने में जो
मजा यहाँ मर जाने में
हाथ जोड़ कर मौत यहाँ पर चाहे ख़ुद मर जाना जी
यह प्यासों की प्रेम सभा है…

यह प्यासों की प्रेम सभा है/गीत/गोपालदास नीरज

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