महकी है यह रजनीगंधा या तेरे तन की खुशबू है | अलकें लहराईं हैं तूने या चंदन-वन की खुशबू है || तेरी इस उन्मुक्त हँसी पर तीनों लोक निछावर शुभदे | तेरे अधरों से निःसृत यह नंदन कानन की खुशबू है || कस्तूरी-मृग-सा चंचल मैं इधर-उधर नजरें दौड़ाऊँ | अब तक समझ नहीं पाया क्यों यह तेरे मन की खुशबू है || डरता हूँ तेरी गलियों में एक अजब-सा है सम्मोहन | अभिसारी आकर्षण इसमें,मृदु परिरंभन की खुशबू है || कालिंदी के कूल मिले हम,पूर्णचंद्र को देखा जी भर | मेरी मुरली तेरी पायल अब तक छन-छन की खुशबू है ||
महकी है यह रजनीगंधा/सजल/वसंत जमशेदपुरी
