महकी है यह रजनीगंधा/सजल/वसंत जमशेदपुरी

महकी है यह रजनीगंधा या तेरे तन की खुशबू है |
अलकें लहराईं हैं तूने या चंदन-वन की खुशबू है ||

तेरी इस उन्मुक्त हँसी पर तीनों लोक निछावर शुभदे |
तेरे अधरों से निःसृत यह नंदन कानन की खुशबू है ||

कस्तूरी-मृग-सा चंचल मैं इधर-उधर नजरें दौड़ाऊँ |
अब तक समझ नहीं पाया क्यों यह तेरे मन की खुशबू है ||

डरता हूँ तेरी गलियों में एक अजब-सा है सम्मोहन |
अभिसारी आकर्षण इसमें,मृदु परिरंभन की खुशबू है ||

कालिंदी के कूल मिले हम,पूर्णचंद्र को देखा जी भर |
मेरी मुरली तेरी पायल अब तक छन-छन की खुशबू है ||
महकी है यह रजनीगंधा/सजल/वसंत जमशेदपुरी

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