बदल गए है सब प्रतिमान/डॉ. बिपिन पाण्डेय

बदल गए है सब प्रतिमान
अस्ताचल में
सच का सूरज
हुआ झूठ का नवल विहान,
त्याज्य हुआ
पंचामृत पोषक
मैला लगता गंगा नीर,
तीर्थाटन है
सैर-सपाटा
घूम-घूम खींचें तस्वीर।
नागफनी की
पूजा होती
तुलसी झेल रही अपमान।
हाय-बाय पर
हम आ पहुँचे
बंद नमस्ते और प्रणाम,
सिसक रहा है
दौर दुखी हो
फैशन के कारण बदनाम।
अंग-अंग जिनमें से झाँके
पहन रहे ऐसे परिधान।
नज़रें झुका
उँगलियाँ चलतीं
मोबाइल सब पकड़े हाथ,
पास-पास
रहते हैं सारे
कोई नहीं किसी के साथ।
मौन व्रती बन
बैठा है घर,
मरघट-सा लगता सुनसान।
बदल गए है सब प्रतिमान/डॉ. बिपिन पाण्डेय

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