नेमते ज़िस्त/दया शर्मा

गुजर रही थी बेसबब ज़िस्त ये हमारी
पाया जो तुम्हें , जीने का तब शऊर आया ।
बिन तुम्हारे ज़िन्दगी  में  कोई नूर न था।
मिले जो तुम खुद को गमों से दूर पाया ।
बदगुमानियों  का दौर था सामने हमारे
तेरे रफ़ाक़त से न खुद को मज़बूर पाया।
महफ़िलों की रौनक में डसती तन्हाई थी।
जाना जब तुमको जीवन में  एक सरूर आया।
बहार बन  कर  आये  हो पतझड़ के मौसम में ।
फिज़ाओं  को भी तुझ पर  आज गरूर आया।
मिल गये हो तो साथ निभाते रहना ।
ज़िक्र ए मोहब्बत पे नाम  तेरा  जरूर आया ।।
नेमते ज़िस्त/दया शर्मा

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