जिंदगी यह जीत भी है हार भी।
फूल भी है और यह अंगार भी।।
हर तरफ आघात ही आघात है।
अब नहीं दिखता कहीं उपकार भी।।
कर्म से ही हो सफल संकल्प शुभ।
गूँज जाती जीत की गुंजार भी।।
हो समर्पित मन-वचन-कर्म से मनुज।
मोड़ देता है समय की धार भी।।
एक छोटी चूक कर देती विफल।
बंद हो जाते खुले सब द्वार भी।।
जिंदगी/सजल/नन्दिता माजी शर्मा
