जाने कितनी बार ठगा/गीत/धीरज श्रीवास्तव

लेखक

  • नाम-   धीरज श्रीवास्तव
    पिता-  स्व. रमाशंकर लाल श्रीवास्तव
    माता- स्व. श्रीमती शान्ती
    जन्मतिथि- 01-09-1974
    वर्तमान पता- ए- 259, संचार विहार मनकापुर जनपद--गोण्डा (उ.प्र.)  पिन - 271308
    स्थायी पता- ग्राम व पोस्ट - चिताही, जनपद- सिद्धार्थ नगर (उ.प्र.)
    शिक्षा- स्नातक

    संपादन- मीठी सी तल्खियाँ (काव्य संग्रह), नेह के महावर (गीत संग्रह)

    प्रकाशन-  मेरे गांव की चिनमुनकी (गीत संग्रह) 'धीरज श्रीवास्तव के गीत( डॉ.सुभाष चंद्र द्वारा संपादित)

    साझा संग्रह--- समकालीन गीतकोश, ग़ज़ल ए गुलदस्त, पांव गोरे चांदनी के, कवितालोक उद्भास, शुभमस्तु,क़ाफ़ियाना, मीठी सी तल्खियां -भाग -2,3,और 4,दोहे के सौ रंग,गीतिकालोक, कुण्डलिनी लोक,तेरी यादें, अनवरत -3, अन्तर्मन, तलाश, मंजर, शब्दों के इन्द्र धनुष,कवि का कहना है, गुनगुनाएं गीत फिर से, एहसासों की पंखुड़ियां, गीत प्रसंग आदि में रचनाओं के प्रकाशन सहित राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं एवं ई पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।

    सम्मान--अनेक सम्मान एवं पुरस्कार।

    संप्रति --- संस्थापक सचिव, साहित्य प्रोत्साहन संस्थान, एवं "साहित्य रागिनी" वेब पत्रिका।

    मोबाइल नंबर- 8858001681, ईमेल- dheerajsrivastava228@gmail.com

     

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मन के भोलेपन को तुमने
जाने कितनी बार ठगा।

जो कुछ भी था मेरा अपना
कर डाला सब तुमको अर्पण !
देख तुम्हारे छल प्रपंच को,
जी भर रोया व्यथित समर्पण !
स्वप्न दिखाकर केवल झूठे
सच्चा पावन प्यार ठगा।
मन के भोलेपन को तुमने
जाने कितनी बार ठगा।

छाती से चिपकाकर सुधियाँ
पीड़ाओं ने लोरी गायी !
सहलाया दे- देकर थपकी
पर जाने क्यों नींद न आयी !
कर्तव्यों की अनदेखी कर
मनचाहा अधिकार ठगा।
मन के भोलेपन को तुमने
जाने कितनी बार ठगा।

निष्ठुरता ने भला प्रेम के
गीत सुकोमल कब हैं गाये !
पाषाणों ने कब लहरों की
धड़कन पर हैं कान लगाये !
ठगा सिन्धु सी गहराई को
नभ जैसा विस्तार ठगा।
मन के भोलेपन को तुमने
जाने कितनी बार ठगा।

 

जाने कितनी बार ठगा/गीत/धीरज श्रीवास्तव

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