प्रकाशन- मेरे गांव की चिनमुनकी (गीत संग्रह) 'धीरज श्रीवास्तव के गीत( डॉ.सुभाष चंद्र द्वारा संपादित)
साझा संग्रह--- समकालीन गीतकोश, ग़ज़ल ए गुलदस्त, पांव गोरे चांदनी के, कवितालोक उद्भास, शुभमस्तु,क़ाफ़ियाना, मीठी सी तल्खियां -भाग -2,3,और 4,दोहे के सौ रंग,गीतिकालोक, कुण्डलिनी लोक,तेरी यादें, अनवरत -3, अन्तर्मन, तलाश, मंजर, शब्दों के इन्द्र धनुष,कवि का कहना है, गुनगुनाएं गीत फिर से, एहसासों की पंखुड़ियां, गीत प्रसंग आदि में रचनाओं के प्रकाशन सहित राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं एवं ई पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन।
सम्मान--अनेक सम्मान एवं पुरस्कार।
संप्रति --- संस्थापक सचिव, साहित्य प्रोत्साहन संस्थान, एवं "साहित्य रागिनी" वेब पत्रिका।
अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा।
खेत और खलिहान बिक गये
इज्जत चाट रही माटी !
अलग अलग चूल्हों में मिलकर
भून रहे सब परिपाटी !
नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा।
बाँट लिए भैया भाभी ने
बाग बगीचे गलियारे !
अन ब्याही बहना है अब तक
बैठी लज्जा के मारे !
दुख की गठरी इन कंधों पर,जाने कब तक ढोना अम्मा।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा।
छोटे की लग गयी नौकरी
दूर शहर में रहता है !
पश्चिम वाली हवा चली जो
संग उसी के बहता है !
सिर्फ रुपैय्या खाता पीता,या फिर चाँदी सोना अम्मा।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा।
सिसक रहे हैं बर्तन भाड़े
मेज कुर्सियाँ अलमारी !
जो आँगन में तख्त पड़ा था
उस पर आज चली आरी !
तुम होती तो देख न पाती,यों रिश्तों का खोना अम्मा।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा।