आजा प्रीतम प्यारे/गीत/वसंत जमशेदपुरी

जब-जब मेघ झरे अंबर से
झंझा पंथ बुहारे ।
तब-तब प्रीत-पखेरू बोले
आजा प्रीतम प्यारे ।।

ठंडी-ठंडी पुरवाई ये
तन में अगन लगाए ,
रिमझिम-रिमझिम मेहा मेरे-
मन की प्यास बढा़ए।
गरज-तरज तन-मन को पीड़ित-
करते घन-कजरारे ।।

तपती धरती को अंबर ने
हौले से दुलराया ,
जैसे परदेशी बालम बिन
पाती द्वारे आया।
और चकित चंचला प्रेयसी
अपलक उसे निहारे।।

सूखी नदिया धन्य हो गयी
अंतर्मन सरसाया ,
टूट गये तटबंध नेह के
तन ऐसा हुलसाया ।
जाल लिए नदियों के तट पर
आ पहुँचे मछुआरे।।
आजा प्रीतम प्यारे/गीत/वसंत जमशेदपुरी

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