वैदेही वनवास सर्ग11-18/अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
एकादश सर्ग रिपुसूदनागमन छन्द : सखी बादल थे नभ में छाये। बदला था रंग समय का॥ थी प्रकृति भरी करुणा में। कर उपचय मेघ-निचय का॥1॥ वे विविध-रूप धारण कर। नभ-तल में घूम रहे थे॥ गिरि के ऊँचे शिखरों को। गौरव से चूम रहे थे॥2॥ वे कभी स्वयं नग-सम बन। थे अद्भुत-दृश्य दिखाते॥ कर कभी दुंदुभी-वादन। […]