+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

धरोहर

बटबाबा/फणीश्वरनाथ रेणु

गाँव से सटे, सड़क के किनारे का वह पुराना वट-वृक्ष। इस बार पतझ्ड़ में उसके पत्ते जो झड़े तो लाल-लाल कोमल पत्तियों को कौन कहे, कोंपल भी नहीं लगे। धीरे-धीरे वह सूखतां गया और एकदम सूख गया-खड़ा ही खड़ा । शाम को निरधन साहु की दुकान पर इसी पेड़ की चर्चा छिड़ी हुई थी। जब […]

एक रंगबाज गाँव की भूमिका/फणीश्वरनाथ रेणु

सड़क खुलने और बस ‘सर्विस’ चालू होने के बाद से सात नदी (और दो जंगल) पार का पिछलपाँक इलाके के हलवाहे-चरवाहे भी “चालू” हो गए हैं…! ‘ए रोक-के ! कहकर “बस’ को कहीं पर रोका जा सकता है और “ठे-क्हेय कहकर “बस’ की देह पर दो थाप लगा देते ही गाड़ी चल पड़ती है – […]

रसप्रिया/फणीश्वरनाथ रेणु

धूल में पड़े कीमती पत्थर को देखकर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई – अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया के मुँह से निकल पड़ा अपरूप-रूप! ….खेतों, मैंदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुन्दरता! मिरदंगिया की क्षीण-ज्योति आँखें सजल हो गई। मोहना ने मुस्कराकर पूछा-तुम्हारी उँगली […]

एक आदिम रात्रि की महक/फणीश्वरनाथ रेणु

न …करमा को नींद नहीं आएगी। नए पक्के मकान में उसे कभी नींद नहीं आती। चूना और वार्निश की गंध के मारे उसकी कनपटी के पास हमेशा चौअन्नी-भर दर्द चिनचिनाता रहता है। पुरानी लाइन के पुराने ‘इस्टिसन’ सब हजार पुराने हों, वहाँ नींद तो आती है।…ले, नाक के अंदर फिर सुड़सुड़ी जगी ससुरी…! करमा छींकने […]

पार्टी का भूत/फणीश्वरनाथ रेणु

यारों की शक्ल से अजी डरता हूँ इसलिए किस पारटी के आप हैं? वह पूछ न बैठे। सूखकर काँटा हो गया हूँ। आँखें धँस गई हैं, बाल बढ़ गए हैं। पाजामा फट गया है।चप्पल टूट गई है। आशिकों की-सी सूरत हो गई है। दिन में चैन नहीं, रात में नींद नहीं आती। आती भी है […]

खंडहर/फणीश्वरनाथ रेणु

लड़ाई, झगड़ा, घटना, दुर्घटना, हादसा-इस तरह की कोई भी बात नहीं हुई। तीन भहीने पर गोपालकृष्ण गाँव लौटा था। शाम को बाबूजी ने, लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँधकर, दीन-दुनिया के नीच-ऊँच दिखाकर, बड़े प्यार से कहा-‘ “गोपाल बजुआ! परसों शिवचलित्तर बाबू से कचहरी में भेंट हुई थी। कुशल-समाचार पूछन के बाद तुम्हारे बारे में भी बातें हुईं। […]

कस्बे की लड़की/फणीश्वरनाथ रेणु

“लल्लन काका! दादाजी कह गए हैं कि लल्लन काका से कहना कि ऱरोज फुआ के साथ… !” लल्लन काका अर्थात्‌ प्रियव्रत ने अपनी भतीजी बन्दना उर्फ बून्दी को मद्धिम आवाज में डॉट बताई, “जा-जा! मालूम है जो कह गए हैं।” बून्दी अप्रतिभ हुई किन्तु उसके होंठों पर वंकिम-दुष्टता अंकित रही और लल्लन काका की मद्धिम […]

कुत्ते की आवाज़/फणीश्वरनाथ रेणु

मेरा गांव ऐसे इलाके में जहां हर साल पश्चिम, पूरब और दक्षिण की – कोशी, पनार, महानन्दा और गंगा की – बाढ़ से पीड़ित प्राणियों के समूह आकर पनाह लेते हैं, सावन-भादो में ट्रेन की खिड़कियों से विशाल और सपाट धरती पर गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरों के हज़ारों झुंड-मुंड देखकर ही लोग बाढ़ की […]

पहलवान की ढोलक/फणीश्वरनाथ रेणु

जाड़े का दिन। अमावस्या की रात—ठंढ़ी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गांव भयार्त शिशु की तरह थर—थर कांप रहा था। पुरानी और उजड़ी, बांस—फूस की झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य। अंधेरा और निस्तबधता! अंधेरी रात चुपचाप आंसू बहा रही थी। निस्त्बधता करूण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने ह्रदय में […]

पंचलाईट/फणीश्वरनाथ रेणु

पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग सभाचट्टी है। सभी पंचायतों में दरी, जाजिम, सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं-पेट्रोमेक्स जिसे गाँववाले पंचलाइट कहते हैं। पंचलाइट खरीदने के बाद पंचों […]

×