+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

धरोहर

पानवाला/सुमित्रानंदन पंत

यह पानवाला और कोई नहीं, हमारा चिर-परिचित पीताम्बर है । बचपन से उसे वैसा ही देखते आए हैं। हम छोटे लड़के थे- स्थानीय हाईस्कूल में चौथे-पाँचवें क्लास में पढ़ते थे । मकान की गली पार करने पर सड़क पर पहुँचते ही जो सब से पहली दूकान मिलती, वह पीताम्बर की । हम कई लड़के रहते, […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड1-5/फणीश्वरनाथ रेणु

‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रुप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। ‘मैला आँचल’ का कथानक एक युवा […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड6-12/फणीश्वरनाथ रेणु

छह बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुखार हुआ है या सरदी लगी है अथवा सिरदर्द कर […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड13-17/फणीश्वरनाथ रेणु

तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कहा है, “एक साल का भी खजाना जिन लोगों के पास बकाया है, उन पर चुपचाप नालिश […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड18-24/फणीश्वरनाथ रेणु

अठारह “क्या नाम ?” “सनिच्चर महतो।” “कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?…क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?…कभी-कभी ? हूँ !…एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।…इधर आओ।…ज़ोर से साँस लो।…एक-दो-तीन बोलो।…ज़ोर से। हाँ, ठीक है।” “क्या नाम ?” “दासू गोप।” […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड25-35/फणीश्वरनाथ रेणु

पच्चीस बावनदास आजकल उदास रहा करता है। “दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?” रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।” बालदेव जी आश्चर्य से मुँह फाड़कर देखते ही रह जाते हैं। “बालदेव जी भाई, अचरज की बात नहीं। भगवान […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड36-44/फणीश्वरनाथ रेणु

छत्तीस डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता देखता है। बनारस और पटना में भी गुलमुहर की डालियाँ लाल फूलों से लद जाती थीं। नेपाल […]

मैला आँचल द्वितीय भाग खंड1-10/फणीश्वरनाथ रेणु

एक सुराज मिल गया ? “अभी मिला नहीं है, पन्द्रह तारीख को मिलेगा। ज्यादा दिनों की देर नहीं, अगले हफ्ता में ही मिल जाएगा। दिल्ली में बातचीत हो गई।…हिन्दू लोग हिन्दुस्थान में, मुसलमान लोग पाखिस्थान में चले जाएँगे। बावनदास जी फिर एक खबर ले आए हैं। ताजा खबर ! …..दफा 40 की लोटस की तरह […]

मैला आँचल द्वितीय भाग खंड11-23/फणीश्वरनाथ रेणु

11 “कमली के बाबू ! कमली के बाबू !…” नींद में तहसीलदार साहब की नाक बहुत बोलती है-खुर्र खुर-र…कमला की माँ पलँग के पास खड़ी है। उसके चेहरे पर भय की काली रेखा छाई हुई है-“कमली के बाबू ?” “ऊँ यें….क्या है?” माँ धीरे-से पलँग पर बैठ जाती है।…तहसीलदार साहब और भी अचकचा जाते हैं, […]

परती परिकथा/फणीश्वरनाथ रेणु

धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, परती जमीन, वन्ध्या धरती…। धरती नहीं, धरती की लाश, जिस पर कफ की तरह फैली हुई हैं बलूचरों की पंक्तियाँ। उत्तर नेपाल से शुरू होकर, दक्षिण गंगातट तक, पूर्णिमा जिले के नक्शे को दो असम भागों में विभक्त करता हुआ_फैला-फैला यह विशाल भू-भाग। लाखों एकड़-भूमि, जिस पर सिर्फ बरसात […]

×