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धरोहर

अंधा युग/धर्मवीर भारती

पात्र अश्वत्थामा, गान्धारी, विदुर, धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, कृतवर्मा, कृपाचार्य, संजय, युयुत्सु, वृद्ध याचक, गूँगा भिखारी, प्रहरी 1, प्रहरी 2, व्यास, बलराम, कृष्ण घटना–काल महाभारत के अट्ठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभास-तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक। स्थापना [नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्त्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ […]

मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय/धर्मवीर भारती

अगस्त १९८९, बचने की उम्मीद नहीं थी। तीन-तीन ज़बर्दस्त हार्ट अटैक, एक के बाद एक। एक तो ऐसा कि नब्ज़ बन्द, सांस बन्द, धड़कन बंद। डाक्टरों ने घोषित कर दिया कि अब प्राण नहीं रहे। पर डॉ. बोर्जेस ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थीं। उन्होंने १०० वाल्ट्स के शाक्स दिए, भयानक प्रयोग। लेकिन वे बोले […]

काले मेघा पानी दे/धर्मवीर भारती

उन लोगों के दो नाम थे – इंदर सेना या मेढक-मंडली | बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत | जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेंढक-मंडली | उनकी अगवानी गलियों से होती थी | वे होते थे […]

पिरामिण की हँसी/धर्मवीर भारती

वह कला के प्रति जीवन का पहला विद्रोह था। मिस्र के राजदूत ने घूम-घूमकर देश- देश में घोषणा की – “मिस्र की राजकुमारी कला को कृत्रिम और नश्वर समझती है । उसके मत में जीवन की यथार्थ बाह्य रूपरेखा कला से अधिक महत्वपूर्ण है। उसका विश्वास है कि कल्पना के सुकुमार उपासक, कलाकार जीवन का […]

कवि और जिन्दगी/धर्मवीर भारती

“गाओ कवि !” अनुरोध भरे स्वर में राजा बोला – “ गाओ, तुम्हारा पहला ही स्वर जैसे हर लेता है जीवन की सीमाएँ, पहुँचा देता है चाँदनी के लोक में, जहाँ कल्पना फूलों से शृंगार कर अतिथियों का स्वागत करती है। मैं भूल जाना चाहता हूँ यह संघर्ष, क्षण भर को मुझे खो जाने दो […]

कलंकित उपासना/धर्मवीर भारती

मनुष्य ईश्वर से पूर्णता का वरदान माँगने गया । ईश्वर अपने कुटिल ओठ दबाकर मुसकराया और बोला- “मेरी उपासना करो, मैं तुम्हें पूर्णता का वरदान दूँगा।” मनुष्य ने असीम श्रद्धा से पुलकित होकर भगवान के चरणों पर अपना रजत मस्तक रख दिया और देर तक उपासना करता रहा। थोड़ी देर बाद मनुष्य ने सर उठाया […]

अमृत की मृत्यु/धर्मवीर भारती

सामने रखे हुए अग्निपात्र से सहसा एक हलके नीले रंग की लपट उठी और बुझ गयी । दूसरी लपट उठी और बुझ गयी। उसके बाद ही दहकते हुए अंगारे चिटखने लगे और उनमें से बड़ी-बड़ी चिनगारियाँ निकलकर कक्ष में उड़ने लगीं। अग्निपात्र के सामने बैठा था एक भिक्षु-काषाय वस्त्र, चौड़ा भाल, लम्बी और गठी हुई […]

कलाः एक मृत्यु चिह्न/धर्मवीर भारती

“मैं विवश हूँ राजकुमारी ! मैं व्यक्तियों की प्रतिमा का अंकन नहीं करता।” “व्यक्तियों की प्रतिमा का अंकन ! मैं व्यक्ति मात्र नहीं हूँ कलाकार, मैं सुन्दरी हूँ और सुन्दरी केवल व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व होती है। काली घटाओं के रेशों से बुनी हुई मेरे नयनों की कजरारी अज्ञानता, पुरवैया के झकोरों से काँपते हुए मृणाल […]

आधार और प्रेरणा/धर्मवीर भारती

सुगन्धित धूम्र की रेखाएँ शून्य पट पर लहराकर अनन्त में मिलने लगीं। शमी की झूलती हुई कोमल शाखाओं में गूंज उठा ऋचागान। बालक के स्वर में स्वर मिलाकर बालिका भी ऋचाएँ गाने लगी। उसका स्वर इतना मीठा था कि डाल पर बैठी कोयल जाकर चुप हो गयी । हरिण शावक तृण चरना भूलकर यज्ञमण्डप में […]

कमल और मुरदे/धर्मवीर भारती

“कमल ? लेकिन स्वर्ग में तो कमल होते ही नहीं !” देवदूतों ने कहा । “किन्तु बिना कमल के आज हमारा शृंगार अधूरा रह जायगा । शरद के निरंभ्र आकाश पर बादल के हल्के कदमों से बिजली की तेजी से नाचने वाली देवकन्याओं की वेणी कमल से शून्य रहेगी। इससे अच्छा तो यह है कि […]

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