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धरोहर

धर्मपरायण रीक्ष/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 सायंकाल हुआ ही चाहता है। जिस प्रकार पक्षी अपना आराम का समय आया देख अपने-अपने खेतों का सहारा ले रहे हैं उसी प्रकार हिंस्र श्‍वापद भी अपनी अव्याहत गति समझ कर कंदराओं से निकलने लगे हैं। भगवान सूर्य प्रकृति को अपना मुख फिर एक बार दिखा कर निद्रा के लिए करवट लेने वाले ही […]

सुखमय जीवन/चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

1 परीक्षा देने के पीछे और उसके फल निकलने के पहले दिन किस बुरी तरह बीतते हैं, यह उन्हीं को मालूम है जिन्हें उन्हें गिनने का अनुभव हुआ है। सुबह उठते ही परीक्षा से आज तक कितने दिन गए, यह गिनते हैं और फिर ‘कहावती आठ हफ्ते’ में कितने दिन घटते हैं, यह गिनते हैं। […]

लघु-कथाएँ/चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

गालियां एक गांव में बारात जीमने बैठी । उस समय स्त्रियां समधियों को गालियां गाती हैं, पर गालियां न गाई जाती देख नागरिक सुधारक बाराती को बड़ा हर्ष हुआ । वहग्राम के एक वृद्ध से कह बैठा, “बड़ी खुशी की बात है कि आपके यहाँ इतनीतरक्की हो गई है।” बुड्ढा बोला, “हाँ साहब, तरक्की हो […]

परीक्षा गुरु (प्रकरण1-11)/ लाला श्रीनिवास दास

निवेदन अबतक नागरी और उर्दू भाषामैं अनेक तरह की अच्छी, अच्छी पुस्तकें तैयार हो चुकी हैं परन्तु मेरे जान इसरीतिसे कोई नहीं लिखी गई इसलिये अपनी भाषामैं यह नई चालकी पुस्तक होगी परंतु नई चाल होनेंसै ही कोई चीज अच्छी नहीं हो सक्ती बल्कि साधारण रीतिसै तो नई चालमैं तरह, तरह की भूल होनेंकी संभावना […]

परीक्षा गुरु (प्रकरण12-25)/लाला श्रीनिवास दास

प्रकरण-१२ : सुख दु:ख आत्‍मा को आधार अरु साक्षी आत्‍मा जान निज आत्माको भूलहू करियेनहिंअपमान29 (29आत्मैव ह्यात्मन: साक्षी गति रात्मा तथात्मन: भाव संस्था: स्वमात्मानं नृणां साक्षिण मुत्तमम् ।।) मनुस्‍मृति। “सुख दु:ख तो बहुधा आदमी की मानसिक बृत्तियों और शरीर की शक्ति के आधीन हैं।एक बात सै एक मनुष्‍य को अत्‍यन्त दु:ख और क्‍लेश होता है […]

परीक्षा गुरु (प्रकरण26-41)/लाला श्रीनिवास दास

प्रकरण-२६ : दिवाला कीजै समझ, न कीजिए बिना बि चार व्‍यवहार।। आय रहत जानत नहीं ? सिरको पायन भार ।। बृन्‍द। लाला मदनमोहन प्रात:काल उठते ही कुतब जानें की तैयारी कर रहे थे। साथ जानेंवाले अपनें, अपनें कपड़े लेकर आते जाते थे, इतनें मैं निहालचंद मोदी कई तकाजगीरों को साथ लेकर आ पहुँचा। इस्‍नें हरकिशोर […]

लखनवी अंदाज/यशपाल

मुफ़स्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी. आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं. दूर तो जाना नहीं था. भीड़ से बचकर, एकांत में नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का ही […]

दुःख का अधिकार/यशपाल

मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह हमारे लिए अनेक बंद दरवाजे खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि हम जरा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते […]

अख़बार के नाम/यशपाल

जून का महीना था, दोपहर का समय और धूप कड़ी थी। ड्रिल-मास्टर साहब ड्रिल करा रहे थे। मास्टर साहब ने लड़कों को एक लाइन में खड़े होकर डबलमार्च करने का आर्डर दिया। लड़कों की लाइन ने मैदान का एक चक्कर पूरा कर दूसरा आरम्भ किया था कि अनन्तराम गिर पड़ा। मास्टर साहब ने पुकारा, ‘हाल्ट!’ […]

करवा का व्रत/यशपाल

कन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे […]

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