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धरोहर

गुँगिया/महादेवी वर्मा

मैंने स्वयं चाहे कम पत्र लिखे हों; पर दूसरों के लिए पत्र – लेखन मेरा कर्तव्य – सा बन गया है। क्या अपना देहात और क्या पहाड़ी ग्राम, सब जगह मेरी स्थिति अर्जीनवीस जैसी हो जाती है। कहीं कोई दुःखिनी माँ, दूर देश भाग जानेवाले पुत्र को वात्सल्य भरा उद्गार लिख भेजने के लिए विकल […]

बिबिया/महादेवी वर्मा

मेरी शहराती बरेठिन मुझे जिज्जी कहती है और उसका लड़का दमड़ी पुकारता है मौसी जी। नागरिक समाज इसे छोटा काम करनेवालों की बड़ी धृष्टता भी कह सकता है पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगता। सम्भवतः इसका कारण मेरे संस्कार हों। अपनी और अपने पिता की ग्रामीण ननसाल में मुझे बूढ़ी नाइन को बदामो नानी, बूढ़े […]

मन्नु की माई/महादेवी वर्मा

पहले-पहले अरैल के भग्नावशेष में एक पक्की पर टूटी-फूटी इमारत देखकर मैंने उसकी दरकी और प्लास्टर रहित दीवार पर कंडे थापने में तन्मय एक स्त्री से पूछा- ‘यह किसका घर है !’ जिससे प्रश्न किया गया था, उसने अपने खरखरे स्वर को और अधिक रूखा बनाकर उत्तर दिया- ‘तोहका का करै का है ! शहराती […]

जंग बहादुर/पर्वत पुत्र/महादेवी वर्मा

बादामी रंग के पुराने कागज के टुकड़े पर लिखी हुई रसीद उंगलियों में थामे हुए, जब मैं कुलियों के चित्रगुप्त अर्थात ठेकेदार की ओर से मुंह फेरकर बाहर बुझने से पहले जल उठने वाले दीपक-जैसी संध्या को देखने लगी, तब उन्हें अपनी अधीनस्थ आत्माओं का लेखा-जोखा और अपनी महत्ता का वर्णन रोकना पड़ा। कई बार […]

वह चीनी भाई/महादेवी वर्मा

मुझे चीनियों में पहचान कर स्मरण रखने योग्य विभिन्नता कम मिलती है। कुछ समतल मुख एक ही साँचे में ढले से जान पड़ते हैं और उनकी एकरसता दूर करने वाली, वस्त्र पर पड़ी हुई सिकुड़न जैसी नाक की गठन में भी विशेष अंतर नहीं दिखाई देता। कुछ तिरछी अधखुली और विरल भूरी बरूनियों वाली आँखों […]

ठकुरी बाबा/महादेवी वर्मा

भक्तिन को जब मैंने अपने कल्पवास संबंधी निश्चय की सूचना दी तब उसे विश्वास ही न हो सका। प्रतिदिन किस तरह पढ़ाने आऊँगी, कैसे लौटूंगी, ताँगेवाला क्या लेगा, मल्लाह कितना माँगेगा, आदि-आदि प्रश्नों की झड़ी लगाकर उसने मेरी अदूरदर्शिता प्रमाणित करने का प्रयत्न किया। मेरे संकल्प के विरुद्ध बोलना उसे और अधिक दृढ़ कर देना […]

भक्तिन/महादेवी वर्मा

छोटे कद और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कानों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर जिस दिन पहले-पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से आज तक एक युग का समय बीत चुका है। पर जब कोई जिज्ञासु उससे इस संबंध में प्रश्न कर बैठता है, तब […]

कौशल/मुंशी प्रेमचंद

1 पंडित बालकराम शास्त्री की धर्मपत्नी माया को बहुत दिनों से एक हार की लालसा थी और वह सैकड़ों ही बार पंडितजी से उसके लिए आग्रह कर चुकी थी; किंतु पंडितजी हीला-हवाला करते रहते थे। यह तो साफ-साफ न कहते थे कि मेरे पास रुपये नहीं हैं- इससे उनके पराक्रम में बट्टा लगता था- तर्कनाओं […]

मंत्र/मुंशी प्रेमचंद

1 संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। डोली औषाधालय के सामने आकर रूक गयी। बूढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी हुई […]

बड़े भाई साहब/मुंशी प्रेमचंद

1 मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्‍होने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्‍व के मामले में वह जल्‍दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन कि बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे जिस पर आलीशान महल […]

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