गुँगिया/महादेवी वर्मा
मैंने स्वयं चाहे कम पत्र लिखे हों; पर दूसरों के लिए पत्र – लेखन मेरा कर्तव्य – सा बन गया है। क्या अपना देहात और क्या पहाड़ी ग्राम, सब जगह मेरी स्थिति अर्जीनवीस जैसी हो जाती है। कहीं कोई दुःखिनी माँ, दूर देश भाग जानेवाले पुत्र को वात्सल्य भरा उद्गार लिख भेजने के लिए विकल […]