एक रंगबाज गाँव की भूमिका/फणीश्वरनाथ रेणु
सड़क खुलने और बस ‘सर्विस’ चालू होने के बाद से सात नदी (और दो जंगल) पार का पिछलपाँक इलाके के हलवाहे-चरवाहे भी “चालू” हो गए हैं…! ‘ए रोक-के ! कहकर “बस’ को कहीं पर रोका जा सकता है और “ठे-क्हेय कहकर “बस’ की देह पर दो थाप लगा देते ही गाड़ी चल पड़ती है – […]