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कविता

हिसाब से/जेवेंद्र जेठवानी

आज का ज़माना तो बदल ही रहा है, अपने हिसाब से, लेकिन लोगों के भाव बदल रहे हैं, वक़्त के हिसाब से, दोस्त, नातेदार, भाई, सब के सब रिश्ते हैं बस नाम के, अबके जो बनायें रिश्ते, बहुत सोच समझकर हिसाब से, आजकल के लोग अगर किसी से बात भी करते हैं तो, वो भी […]

सुविधा में हैं, दुविधा में हैं/देवेंद्र जेठवानी

भ्रष्टाचार करने वाले सब नेता, बेशुमार सुविधा में हैं, चोर-उचक्के, घोटालेबाज, सब के सब सुविधा में हैं, जो झूठ बोले, चमचागिरी करें, वो भरपूर सुविधा में हैं, जो मुँह पर सच्ची बात कहें, हर वो शख़्स दुविधा में है, दावत जिसे खाने को मिले स्वादिष्ट, वो मेहमान सुविधा में हैं, जिसके हों 10-12 साले-साली, वो […]

अब तो न नींद और न ही चैन है/देवेंद्र जेठवानी

अब तो न नींद और न ही चैन है, दीदार को तेरे तरस गए, ये नैन हैं, वो पक्षियों का चहचहाना, वो भवरों का मंडराना, अब कुछ नहीं रहा, तेरे चले जाने के बाद, सुनहरी धूप के साथ सूरज का निकलना, मधुर आवाज़ में कोयल का गाना, पत्तों का जोश के साथ तड़तड़ाना, अब कुछ […]

अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा/देवेंद्र जेठवानी

अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा” अब जूता मेरा, मेरे बेटे के पैर में आने लगा,          अब हर बात पर, वो मुझे समझाने लगा, ईमानदारी से जिया जीवन, न किया कभी दगा,         सबको समझा अपना, क्या पराया, क्या सगा, कल तक जो जान था, घर की,             अब वो सबको सताने लगा, […]

तू थक्कर यूँ न बैठ/देवेंद्र जेठवानी

कठिनाईयाँ हैं बहुत, है पथरीला रास्ता, तू थककर यूँ न बैठ, है तुझको रब का वास्ता, चुनौतियाँ का तो काम है, वो आती ही जाएँगी, मंज़िल को तेरी वो, और भी कठिन बनाएँगी, “बलशाली” है तू बहुत, इस बात को तू जान ले, तू झुका सकता है, इस आसमाँ को भी, ग़र तू जो इक […]

जीवन चक्र/देवेंद्र जेठवानी

छूट जाएगी सब यहीं नौकरी-चाकरी, ख़त्म यहीं सब व्यापार होगा, शमशान ही होगा अंतिम मंज़िल तेरी, बस मृत्यु ही जीवन का सार होगा, तेरा ये रुतबा, तेरी ये सारी रसूखदारी, बाक़ी न ही कोई भंडार होगा, टूटेगी जब ये साँसों की माला, इसका फ़िर न कोई उपचार होगा, यही होता आया है, यही होता आएगा, […]

जलन की देवी/ शुचि ‘भवि’

वह टूट रही थी भीतर-भीतर और इस टूटन को छुपाने उल्टी-सीधी लकीरें खिंचती रहती थीं हर एक उसे अपना प्रतिद्वंदी दिखता था अब वह नक़्ल भी करने लगी थी हर किसी की हर बात की,,, मनगढ़ंत कहानियाँ बनाती स्वयं को सर्वश्रेष्ठ दर्शाती,,, बेसुरी बीन की तरह बजना उसे लुभाता था उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता […]

गूँगे को मीठा मिल जाये/डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

गूँगे को मीठा मिल जाये, स्वाद  नहीं कहने में आये । आज बहुत ही खुश हूँ प्रीतम,तुम मेरे सपने में आये।  हीरे माणिक शब्द सजाकर,  तुम से पाया आँचल में । बिछुड़े थे हम कहाँ तुम्हारे , करुणा बहती  काजल में । आँख ढरे सुरमा सुषमा से,बूँद जहाँ गलने में आये। गूँगे को मीठा मिल […]

निखर रही है आज कौमुदी/डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

निखर रही है आज कौमुदी, चंद्र पूर्णिमा मोहे तन मन । सुधबुध खोये निशा बावरी, सरस हुआ वसुधा का आँगन । छाया यौवन लहर लहर पर, खोल सखे निदियारी अँखियाँ। सरस मोहनी  छेड़़ रागिनी, हंस  युगल  की प्यारी बतियाँ । नील गगन है मौन साधता,   शाख शाख तन झूमे कानन । सरस हुआ वसुधा का […]

पनघट घट पनिहारी/डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

चैत चली पछुआ अँगनाई,पनघट घट पनिहारी  । खड़ी दुपहरी मन भरमावे,गीत हुए महुआरी ।  ———-गीत हुए महुआरी  ———- काँधे घड़िला शीश धरे पट, डगर मगर कटि बाला । राह निहारे प्यारी गइया, भामिनि हाथ निवाला ।  लाज लसे लोचनि रति हौले,पग झांझर झनकारी । ———-गीत हुए महुआरी  ———– रैन दिवस घड़ि पहर न जाने, जीवट […]

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