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कविता

 सम्मान/भाऊराव महंत

बहुत बड़ा संसार हमारा, उसमें देश अनेक। दुनिया भर के उन देशों में, भारत भी है एक।। जिसका एक तिरंगा झंडा, और एक है गान। करता है प्रत्येक आदमी, दोनों का सम्मान।। लेकिन जो सम्मान न करते, हम हैं उनसे रुष्ट। ऐसी आदत वालों को तो, कहते हम सब दुष्ट।।

ये बच्चे हैं/भाऊराव महंत

करते रहते ये बच्चे हैं, काम इन्हें जो चाहे दे दो। चंगू-मंगू, गोलू-मोलू, आशा-ऊषा या फिर भोलू। बड़े प्यार से बातें करते, नाम इन्हें जो चाहे दे दो। जितनी होती इन्हें जरूरत, उससे अधिक न इनकी चाहत। ख़ुश हो जाते थोड़े-से में, दाम इन्हें जो चाहे दे दो। इस दुनिया के बच्चे सारे, आसमान के […]

चींटी और हाथी/भाऊराव महंत

आओ बच्चों तुम्हें बताऊँ, एक समय की बात। चींटी से हाथी ने बोला- ‘क्या तेरी औकात।।’ ‘मैं तो हाथी बहुत बड़ा हूँ, तू नन्ही-सी जान। मेरी एक फूँक से तेरे, उड़ जाएँगे प्राण।’ इस पर चींटी चिंतित होकर, रहने लगी उदास। और सोचने लगी बहुत है, ताकत उसके पास। कैसे उसको सबक सिखाऊँ, दूँ मैं […]

बंदर मामा/भाऊराव महंत

कभी-कभी तो बंदर मामा, खुद को जतलाने विद्वान। अजब-गजब का ड्रामा करते, और मचाते हैं तूफान। एक रोज ज्ञानी बनने का, हुआ उन्हें था भूत सवार। इसीलिए वे पकड़ हाथ में, बैठ गए पढ़ने अखबार। जहाँ भीड़ थी जानवरों की, बैठे वहीं पालथी मार। और लगाकर काला चश्मा, हुए पढ़ाकू से तैयार। लगे जानवर हँसने […]

परीक्षा/भाऊराव महंत

 बच्चों! जिसकी आशंका से, अक्सर सब डरते हैं। कभी न आए, यही कामना, लोग सभी करते हैं।। कोई शेर नहीं है वह तो, कोई भूत नहीं है। जीवन में कोई भी उससे, किन्तु अछूत नहीं है।। लेकिन बच्चों! जिस पर चलती, नहीं हमारी इच्छा। लोग उसे डर-डरकर कहते, आई अरे! परीक्षा।।

सर्दी की सैर/भाऊराव महंत

बिन स्वेटर के घूम रहा था, चूहों का सरदार। और साथ ही जाड़े में थी, मफ़लर की दरकार। भीषण सर्दी में भी उसके, खुले हुए थे कान। जिसके कारण मुश्किल में थी, चूहे जी की जान। थर-थर थर-थर कांप रहे थे, उसके सारे अंग। उड़ा हुआ था उसके पूरे, चेहरे का भी रंग। छोड़ घूमना […]

कौए भाई/भाऊराव महंत

कौए भाई–कौए भाई, तुम जो काले-काले हो। कर्कश बोली होकर भी तुम, कितने भोले-भाले हो।। कोयल तुम्हें समझती अपना, शत्रु बड़ा सबसे भाई। लेकिन उसने कभी न जाना कितनी तुम में करुणाई।। तुम ही तो कोयल के कुल में, नित्य उजाला करते हो। उसके नन्हे-नन्हे बच्चे, खुद जो पाला करते हो।।

है वो फूल जैसी कोमल/देवेंद्र जेठवानी

है वो फूल जैसी कोमल, बेहद ख़ूबसूरत और महकदाऱ, कि, हम तो सोच भी नहीं सकते, कि यहाँ तो हजारों कतार में हैं, हम जैसे हैं कई, जो हैं उनकी क़ातिल अदाओं से घायल, लेकिन फ़िर भी उनके दीदार-ए-हुस्न के इंतज़ार में हैं, इक अरसे से लगे हैं जितने भी, हैं वो पूरी शिद्दत लिये […]

चिंगारी बन गई है आग/देवेंद्र जेठवानी

चिंगारी बन गई है आग, फ़िर भी कहीं कोई धुँआ ही नहीं है, लगी है ये आग कैसी कि, उठा कहीं कोई धुँआ ही नहीं है, जलकर खाक हो गई मिल्क़ियत सारी, बचा कुछ भी नहीं, फ़िर भी कुछ रायचंदों की मानें तो ख़ास कुछ हुआ ही नहीं है पानी की प्यास बुझाने को तो, […]

मेरी माँ/देवेंद्र जेठवानी

वो लगाकर मुझको गले, मेरी सारी नज़र उतार देती थी, दुनिया के बाकी सारे रिश्ते थे मतलबी, माँ बस इक तू ही तो निस्वार्थ प्यार देती थी, वो चूमकर मेरा माथा, मेरी सोई हुई किस्मत सुधार देती थी, वो दुनिया भर की असीम खुशियाँ, मुझपर वार देती थी, जब भी कभी मायूस होता था कभी, […]

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