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कविता

माँ की थैली/माधुरी “अदिति”

माँ की थैली, गठरी, बस्ते में… माँ अपने बच्चे को हर चीज़ दे देना चाहती है दुनिया की हर चीज़ समेट लेना चाहती है थैला /गठरी/बस्ते में । आम, कच्ची-कैरी, निबोरी, ऑंवला , इमली , मसाला ,और अचार भी , दाल-चावल-सब्जी, दही कपड़े और जाने क्या-क्या, जानती है , कि चल न सकेंगी ता-उम्र उसकी […]

मानवता करे पुकार/डॉ अंजु दुआ जैमिनी

मानवता करे पुकार इस देश में हर धर्म के  लोग बसते हैं, शायद तभी,  त्रिशूल और डंडे  बंटते हैं।  कुछ बहुसंख्यक  तो कुछ अल्पसंख्यक रहते हैं, तभी दोनों बराबर बराबर मरते हैं, खून के प्यासों की पुकार  जंगल के शेर भी   डरते हैं, मानव को दानव में बदलते देख  दानव सहमते हैं,  कहाँ खो गया […]

गज़ल-नौच कर खा गया/मुझको सज़ा देगा दिल/कृष्णा शर्मा ‘दामिनी’

उसने इक बार जो बोला कभी मुमताज़ मुझे उड़ गया ले के मेरा जज़्ब ए परवाज़ मुझे तू अकेला है कहां हर जगह हाज़िर मैं हूँ दे के तो देख कभी धीरे से आवाज़ मुझे अपने बचपन की सहेली से भी गर बात करूँ देखे मशकूक नज़र से मेरा हमराज़ मुझे एक मुद्दत से अधूरी […]

स्मृतियां/सरिता अंजनी सरस

स्मृतियां स्नो फॉल सी है गिरती हैं और जम जाती हैं बर्फ सी…. रेत के मानिंद फिसल चुका अतीत अपने वर्तमान में कितना कड़वा होता है स्मृतियों में उतना ही सुंदर। कोरोना का कहर और युद्ध की विभीषिका के बीच वक्त ने सदमे भरी एक गहरी सांस ली एकाएक पेड़ों के पत्ते झुलस गए। पक्षियों […]

मेरी ख़्वाहिश उसका विकास/डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’

मैं दुआ करता हूँ बढ़ चढ़कर श्रम करता हूँ करता हूँ गुलामी या चापलूसी भी उसके उत्थान के लिये जो पहले से ही मुझसे बहुत ऊपर है इसलिये कि वो और ऊपर उठे…… आसमान की ऊँचाइयों तक… कह सकूँ मैं गर्व से कि सुनो! सुनो!! सुनो!!! ….उसको मै जानता हूँ जिसको जानने में दुनिया लगी […]

सँवरकी/धीरज श्रीवास्तव

आज अचानक हमें अचम्भित, सुबह-सुबह कर गयी सँवरकी। कफ़ ने जकड़ी ऐसे छाती, खाँस-खाँस मर गयी सँवरकी। जूठन धो-धोकर,खुद्दारी, बच्चे दो-दो पाल रही थी। विवश जरूरत जान बूझकर, बीमारी को टाल रही थी। कल ही की तो बात शाम को ठीक-ठाक घर गयी सँवरकी। लाचारी पी-पीकर काढ़ा ढाँढस रही बँधाती मन को। आशंकित थी, दीमक […]

इस जीवन का क्या एतबार करुं/लखनलाल माहेश्वरी

इस जीवन का क्या एतबार करुं जीवन में कुछ नही है मेरा क्या विचार करुं जीवन संघर्ष का एक डेरा है संघर्ष से लडकर जीवन बेकार करुं। । इन सांसो का कोई एतबार नहीं है अंत समय में साथ नहीं देती है क्या पता इन सांसो का कब रुक जाएं यह दुनिया पल भर में […]

जब घर में बच्चे भूखे हों/चन्द्रगत भारती

हूं अगर अयोध्या का वासी हरिद्वार नही लिख पाऊंगा जब घर में बच्चे भूखे हों श्रृंगार नही लिख पाऊंगा ।। गोरखपुर के स्टेशन पर कुछ बच्चे जीवन काट रहे बस ढूंढ ढूंढ कर कूड़े में खाने की पत्तल चाट रहे मै गाली की सौगातों को उपहार नही लिख पाऊंगा ।। माँ सरयू के पावन तट […]

किंतु अधूरा प्यार न देना/अशोक बाजपेयी

किंतु अधूरा प्यार न देना मन मधुबन में फूल खिला कर तड़पन की मझधार न देना । जी लूंगा मैं याद सहारे , किंतु अधूरा प्यार न देना । सुमन खोजता रहा जगत में , शूलों का प्रतिदान मिला । मन का विश्वास हुआ घायल , जब अपनों से सम्मान मिला । दंश भरा मेरा […]

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