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कविता

सरगम/कीर्ति श्रीवास्तव

झरोखे से देखती रिमझिम बारिश की बूंदों को सावन की वो पहली बारिश भीगो गई मेरे मन को और याद दिला गई उस सावन को जब साजन के आने की राह ताकती थी मैं पीहर के द्वार पर छोड़ गए थे जो उदर में पल रहे एक बीज के साथ चंद नोटों की खातिर कुछ […]

सावन के झूल/कीर्ति श्रीवास्तव

अमुआ पे लग गए सावन के झूले सखियों का तन-मन मारे हिलोरे। हरी हरी चूडिय़ाँ संग मेहंदी रचे हाथ हैं फूलों का झूला और सखियों का साथ है लाल-लाल चुनर खाती है हिचकोले। सखियों का तन-मन मारे हिलोरे। सोलह श्रंगार कर सजनी है आई पिया जी के मन में बाजे शहनाई पायल की छम-छम सबको […]

जिंदगी की दौड़/नंदिनी चौहान

जिंदगी की गाड़ी बहुत तेज चल रही है।। मौसम की तरह सबकी फितरत बदल रही है। ग़मो की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, खुशियाँ तो जैसे किश्तों में मिल रही हैं।। हमारी भावनाओं पे काबू हमारा नहीं, ये तो दूसरों की शर्तों पे चल रही है।। आजकल रिश्तों में मिठास कम है, दिन रात कड़वाहट जो […]

देवादिदेव महादेव/नंदिनी चौहान

शिव जो कालों के काल हैं वो महाकाल हैं त्रिनेत्रधारी शम्भू गले में जिनके व्याल हैं।। जटाओ में गंगा है जिनके चंद्र सोहे भाल है देह रमाते भस्म हैं,पहने बाघ की खाल है।। ओमकार कृपानिधि कैलाश के वासी हैं भक्तों के रक्षक शिव अमर अविनाशी हैं।। नंदी की सवारी है संग में गौरा प्यारी हैं […]

वैशाखी का दिनः जगदीश कौर

वैशाखी का दिनः जगदीश कौर डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) गुरु गोबिंद ने वैशाखी वाले दिन को चुना। लेने को इम्तिहान ताना-बाना था बुना।। यह दिन खुशी का सबके लिए भारी था। किसान भी फसल काटने की तैयारी को था।। सिकखी में धर्म, जाँत का भेदभाव न था। किसी के लिए नफरत, अलगाव भी न था।। हिंदू […]

एक चंदा हैः बबिता प्रजापति

एक चंदा हैः बबिता प्रजापति डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) एक चंदा है उसको घेरे तारे हैं कुछ चंदा संग चमक रहे कुछ दूर बेचारे हैं। वे छोटे प्यारे शिशु छत पे लेटे सोच रहे इस चंदा पे ये बूढ़ी दादी जाने किसके सहारे है। छोटे छोटे भाई बहन तारों की हलचल देख रहे एक सरकता दूजा […]

हार कैसे मान लें हमः डा.रमेश कटारिया

हार कैसे मान लें हमः डा.रमेश कटारिया डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) नफरती तेवर तुम्हारे हार कैसे मान लें हम। ठीक से पहले तुम्हे हम जान लें पहचान लें हम। नफरतें करते रहे और प्यार जतलाते रहे। उसी थाली में छेद किया जिसमें तुम खाते रहे। इन तुम्हारी हरकतों को मनुहार कैसे मान लें हम। कितना समझाया […]

जीवन तो एक बंजारा है/शुभ्रा बाजपेयी

जीवन तो एक बंजारा है । जो फिरता मारा मारा है ॥ इसका तो ध्येय मौत केवल , विधना ने किया इशारा है । यह दो पल सिर्फ हमारा है । जीवन तो एक बंजारा है ॥ यह गीत खुशी और गम के लेकर , मानव काया की बस्ती में । कुछ मधुर और कुछ […]

सपनों को जीवन दे बैठा/राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

प्रेम यज्ञ की आहुति बनकर, मैं जीवन का शिखर हो गया। तुम जीकर रह सके न जीवित, मैं मरकर भी अमर हो गया।। सुलग रही हैं अब तक आहे, जिनको तुमने सुलगाया था यों तो है उपहार तुम्हारा, किन्तु आँच तुम सह न सकोगे। जिस एकाकी निर्जन वन में, मैंने काटी उमर विरह की उसमें […]

माँ/रचना निर्मल

1.माँ  माँ गंगा सी  निश्छल  जिसके दो किनारे  समाज और  संस्कार  समेट लेती है जो सबके गम और भर देती है नई उमंग  बच्चों संग अठखेलियां करती है तो शांत हो जाती बड़ों में  जानती है झूठ और सच पर बनी रहती है अंजान  लगी रहती है धोने अपनों के मन में जमी फरेब की […]

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