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कविता

लहर लहर तट रहा झकोरे/डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

लहर लहर तट रहा झकोरे, घूम रहा तूफान निराला । घूम रहा तूफान —– फँसा बटोही नगर डगर तक बना हुआ हैवान निराला । बना हुआ हैवान—- विफर पड़ी आक्रोशित लहरें दिव्य साधना नित होअर्चन । जनधन की भारी है  चिंता, त्राहि मचाये ये परिवर्तन । भृकुटि तानकर खड़ी आपदा, लेना है  संज्ञान निराला । […]

मेघदूत यायावर लेकर/डॉ प्रेमलता त्रिपाठी 

मेघदूत यायावर लेकर , खुशियों का संदेश। शृंग पार से आया न्यासी, अमित लगे परिवेश । श्वेत-श्याम में उलझे नैना, कजरी के  शृंगार । चहुँदिक डोले बादल छौने, क्या मधुबन क्या थार । दूब दूब पर मोती मानिक, भरे धरा के  गोद, पाकर आँचल को हुलसाये,  अम्बर से सित धार । उमड़ घुमड़ नभ से […]

स्वाभिमान है हिन्दी/डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

 पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी ही मंथन चिंतन में, करिए सदा निवेश भृगु पराशर व्यास अंगिरा,शतानंद   सत चित्र ।  ऋषि पुलस्त्य अगस्त्य सहित, नारद विश्वामित्र । ऋषि समग्र आशीष कृपा से, पूर्ण शुद्ध परिवेश।  पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी का विस्तार जहाँ से,भरत भूमि है धन्य । परम […]

प्रारब्ध/कीर्ति श्रीवास्तव

आज फिर उड़ चली हूँ मैं सपनों के पँख लगाए पहले सपने तो थे पर पँख न थे आँखों में आशाएँ लिए ताकती थी खिडक़ी के बाहर और जोहती थी इक तिनके की बाट जो आये और बता जाए अपना अस्तित्व और कर जाए मेरी सहनशीलता को सलाम सुन मेरी पुकार आया वो तिनका और […]

बिटिया/कीर्ति श्रीवास्तव

बिटिया तेरे आ जाने से महका मेरा घर-आँगन देखा तुझको तब ही जाना क्या होता है यह दर्पण तू मेरे सपनों की गुडिय़ा तू मेरे आँगन की चिडिय़ा ठुमक-ठुमक कर जब तू चलती भर आता नैनों मे पनिया एक दिवस तू उड़ जाएगी पहन के पाँव में पेजनिया जब तू होले से मुस्काई मानो चले […]

वो माँ ही थी/कीर्ति श्रीवास्तव

वो माँ ही थी जो मुझे खिलाकर खाती थी कभी न सोचा क्यों ऐसा था शायद बर्तन खाली होता था जब भी जिद की संग खाने की प्यार से मुझे सुनाती कहानी थी अपने हाथों खिलाती निवाला थी वो माँ ही थी जो देकर मुझे बिछौना खुद धरती पर सोती थी अपना आँचल डाल मुझ […]

तेरी छाया हूँ/कीर्ति श्रीवास्तव

तू धूप तो मैं तेरी छाया हूँ तू दिया तो मैं उसकी बाती हूँ तू मेरे सुरों का साज है मैं कश्ती तो तू पतवार है प्रेम क्या है बतलाया तूने प्रेम का सही रंग दिखलाया तूने सुख-दु:ख जीवन के दो रास्ते हैं सुख का तू साथी है तो तेरे दु:ख की मैं संगिनी हूँ […]

प्यार की परिभाषा/कीर्ति श्रीवास्तव

उस दिन जब तुमने थामा था हाथ मेरा खुशी की सीमा न थी मेरी मैंने ही सिखाई तुम्हें प्यार की यह परिभाषा कि प्यार जीवन भर साथ निभाने का नाम है जानते ही उस अहसास को तुम छोड़ मेरा हाथ आगे निकल गये जान नहीं पायी और पहचान भी नहीं पायी तेरी बदली हुई उस […]

महकती जिन्दगी/कीर्ति श्रीवास्तव

वो हंसी ख्वाब वो महकती जि़न्दगी तेरे आने से लगे चहुँ ओर रोशनी कितनी बिना जि़क्र के ही रहता तू ख्य़ालों में मेरे नहीं जानते थे होंगे कभी बेबस इतने तेरे लिए फिर भी सोच ले एक बार यदि साथ चलना है मेरे तो दोस्तों की भीड़ में मिलेंगे दुश्मन भी कई कीर्ति श्रीवास्तव

यादें/कीर्ति श्रीवास्तव

कितनी अजीब होती हैं ये यादें जो कभी दर्द तो कभी खुशी दे जाती हैं पर तेरी यादें मुझे तुझसे मिलवाती हैं तेरे बालों की वो खुशबू और उनसे टपकती पानी की बूँदें मुझे आज भी सराबोर कर जाती हैं तेरे पैरों के नाजुक तलवों को अपने हाथों में थामना और तेरा मना करना मुझे […]

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