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उपन्यास

परीक्षा गुरु (प्रकरण1-11)/ लाला श्रीनिवास दास

निवेदन अबतक नागरी और उर्दू भाषामैं अनेक तरह की अच्छी, अच्छी पुस्तकें तैयार हो चुकी हैं परन्तु मेरे जान इसरीतिसे कोई नहीं लिखी गई इसलिये अपनी भाषामैं यह नई चालकी पुस्तक होगी परंतु नई चाल होनेंसै ही कोई चीज अच्छी नहीं हो सक्ती बल्कि साधारण रीतिसै तो नई चालमैं तरह, तरह की भूल होनेंकी संभावना […]

परीक्षा गुरु (प्रकरण12-25)/लाला श्रीनिवास दास

प्रकरण-१२ : सुख दु:ख आत्‍मा को आधार अरु साक्षी आत्‍मा जान निज आत्माको भूलहू करियेनहिंअपमान29 (29आत्मैव ह्यात्मन: साक्षी गति रात्मा तथात्मन: भाव संस्था: स्वमात्मानं नृणां साक्षिण मुत्तमम् ।।) मनुस्‍मृति। “सुख दु:ख तो बहुधा आदमी की मानसिक बृत्तियों और शरीर की शक्ति के आधीन हैं।एक बात सै एक मनुष्‍य को अत्‍यन्त दु:ख और क्‍लेश होता है […]

परीक्षा गुरु (प्रकरण26-41)/लाला श्रीनिवास दास

प्रकरण-२६ : दिवाला कीजै समझ, न कीजिए बिना बि चार व्‍यवहार।। आय रहत जानत नहीं ? सिरको पायन भार ।। बृन्‍द। लाला मदनमोहन प्रात:काल उठते ही कुतब जानें की तैयारी कर रहे थे। साथ जानेंवाले अपनें, अपनें कपड़े लेकर आते जाते थे, इतनें मैं निहालचंद मोदी कई तकाजगीरों को साथ लेकर आ पहुँचा। इस्‍नें हरकिशोर […]

रानी नागफनी की कहानी भाग1/हरिशंकर परसाई

यह एक व्यंग्य कथा है। ‘फेंटजी’ के माध्यम से मैंने आज की वास्तविकता के कुछ पहलुओं की आलोचना की है। ‘फेंटेजी’ का माध्यम कुछ सुविधाओं के कारण चुना है। लोक-मानस से परंपरागत संगति के कारण ‘फेंटेजी’ की व्यंजना प्रभावकारी होती है इसमें स्वतंत्रता भी काफी होती है और कार्यकारण संबंध का शिकंजा ढीला होता है। […]

रानी नागफनी की कहानी भाग2/हरिशंकर परसाई

होना बीमार और लगना पेनिसिलिन अस्तभान अब रात-दिन नागफनी के चित्रों को देखता रहता और ‘हाय ! हाय !’ करता रहता । प्रेम की पीड़ा से आठों पहर तड़पता रहता। उसकी यह हालत देखकर मुफतलाल घबड़ाया और एक नामी डॉक्टर को बुला लाया । डॉक्टर स्टेथिस्कोप की माला पहने अस्तभान के पलंग के पास बैठ […]

सूरज का सातवाँ घोड़ा/धर्मवीर भारती

एक नए ढंग का लघु उपन्यास आगे बढ़ो, सूर्योदय रुका हुआ है! सूरज को मुक्त करो ताकि संसार में प्रकाश हो, देखो उसके रथ का चक्र कीचड़ में फँस गया है आगे बढ़ो साथियो! सूरज के लिए यह संभव नहीं कि वो अकेले उदित हो सके घुटने जमा कर, सीना अड़ा कर उसके रथ को […]

गुनाहों का देवता भाग1/धर्मवीर भारती

अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की कल्पनाएँ आज भी मान्य होतीं तो मैं कहता कि इलाहाबाद का नगर-देवता जरूर कोई रोमैण्टिक कलाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, जिंदगी और रहन-सहन में कोई बँधे-बँधाये नियम नहीं, कहीं कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वच्छन्द खुलाव, एक बिखरी हुई-सी […]

गुनाहों का देवता भाग2/धर्मवीर भारती

”अबकी जाड़े में तुम्हारा ब्याह होगा तो आखिर हम लोग नयी-नयी चीज का इन्तजाम करें न। अब डॉक्टर हुए, अब डॉक्टरनी आएँगी!” सुधा बोली। खैर, बहुत मनाने-बहलाने-फुसलाने पर सुधा मिठाई मँगवाने को राजी हुई। जब नौकर मिठाई लेने चला गया तो चन्दर ने चारों ओर देखकर पूछा, ”कहाँ गयी बिनती? उसे भी बुलाओ कि अकेले-अकेले […]

गुनाहों का देवता भाग3/धर्मवीर भारती

आज कितने दिनों बाद तुम्हें खत लिखने का मौका मिल रहा है। सोचा था, बिनती के ब्याह के महीने-भर पहले गाँव आ जाऊँगी तो एक दिन के लिए तुम्हें आकर देख जाऊँगी। लेकिन इरादे इरादे हैं और जिंदगी जिंदगी। अब सुधा अपने जेठ और सास के लड़के की गुलाम है। ब्याह के दूसरे दिन ही […]

मैला आँचल प्रथम भाग खंड1-5/फणीश्वरनाथ रेणु

‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रुप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। ‘मैला आँचल’ का कथानक एक युवा […]

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