समझ खिलौना बेच दिया है ।
सपन सलौना बेच दिया है ।।
कुछ ने तो अपना ऊंचापन ।
बन कर बौना बेच दिया है।।
तुम क्या जानों भूख उदर की।
सुमन बिछौना बेच दिया है।।
अब पंगत क्या बिठलायेगा।
पत्तल दौना बेच दिया है।।
गम की मारी रुदाली ने।
रोना धोना बेच दिया है।।
आज़ादी की यादों का था।
घाव घिनौना बेच दिया है।।
ठौड़ी बेची ठौड़ी पर वो ।
श्याम डिठौना बेच दिया है।।
घर के हित में उसने घर का।
कोना कोना बेच दिया है।।
दिलजीत सिंह रील
तुम क्या जानों भूख उदर की/दिलजीत सिंह रील