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पुलिस अफ़सर/कविता/नागार्जुन

जिनके बूटों से कीलित है, भारत माँ की छाती
जिनके दीपों में जलती है, तरुण आँत की बाती

ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन
है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन

जिन्हें अँगूठा दिखा-दिखाकर, मौज मारते डाकू
हावी है जिनके पिस्तौलों पर, गुंडों के चाकू

चाँदी के जूते सहलाया करती, जिनकी नानी
पचा न पाए जो अब तक, नए हिंद का पानी

जिनको है मालूम ख़ूब, शासक जमात की पोल
मंत्री भी पीटा करते जिनकी ख़ूबी के ढोल

युग को समझ न पाते जिनके भूसा भरे दिमाग़
लगा रही जिनकी नादानी पानी में भी आग

पुलिस महकमे के वे हाक़िम, सुन लें मेरी बात
जनता ने हिटलर, मुसोलिनी तक को मारी लात

अजी, आपकी क्या बिसात है, क्या बूता है कहिए
सभ्य राष्ट्र की शिष्ट पुलिस है, तो विनम्र रहिए

वर्ना होश दुरुस्त करेगा, आया नया ज़माना
फटे न वर्दी, टोप न उतरे, प्राण न पड़े गँवाना

लेखक

  • नागार्जुन (30जून 1911- 5 नवम्बर 1998) का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था। वह हिन्दी और मैथिली के लेखक और कवि थे। वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार थे । उन्होंने संस्कृत एवं बाङ्ला में भी मौलिक रचनाएँ कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया । साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने हिन्दी साहित्य में नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। काशी में रहते हुए उन्होंने 'वैदेह' उपनाम से भी कविताएँ लिखी थीं। सन् १९३६ में सिंहल में 'विद्यालंकार परिवेण' में ही 'नागार्जुन' नाम ग्रहण किया। उनकी रचनाएँ हैं; कविता-संग्रह: युगधारा -१९५३, सतरंगे पंखोंवाली -१९५९, प्यासी पथराई आँखें -१९६२, तालाब की मछलियाँ -१९७४, तुमने कहा था -१९८०, खिचड़ी विप्लव देखा हमने -१९८०, हज़ार-हज़ार बाहों वाली -१९८१, पुरानी जूतियों का कोरस -१९८३, रत्नगर्भ -१९८४, ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या!! -१९८५, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने -१९८६, इस गुब्बारे की छाया में -१९९०, भूल जाओ पुराने सपने -१९९४, अपने खेत में -१९९७; प्रबंध काव्य: भस्मांकुर -१९७०, भूमिजा; उपन्यास: रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नयी पौध -१९५३, बाबा बटेसरनाथ, वरुण के बेटे, दुखमोचन, कुंभीपाक/चम्पा, हीरक जयन्ती/अभिनन्दन, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, गरीबदास; संस्मरण: एक व्यक्ति: एक युग; कहानी संग्रह: आसमान में चन्दा तैरे -१९८२ । मैथिली कविता-संग्रह: चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ, पका है यह कटहल ।

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