तोड़कर अब पाँव की बेड़ियाँ
चाँद को छूने लगी हैं बेटियाँ
ढूँढता फिरता है वो भी खामियाँ
कर रहा है रात-दिन जो गलतियाँ
आजकल महफूज दिखती हैं कहाँ
रक्स करती शाख की वो तितलियाँ
चार दिन के बाद ही मांगे बहू
मालकिन हूँ दे दो घर की चाबियाँ
वक़्त से पहले सयानी हो गयीं
जाल में फँसती कहाँ हैं मछलियाँ
लेखक
-
सत्यम भारती जन्म-20 मई 1995 जन्मस्थान- बेगूसराय, बिहार शिक्षा :- स्नातक, बीएचयू परास्नातक, जेएनयू नेट और जेआरएफ(हिंदी) पीएचडी(अध्ययनरत), हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा सम्प्रति- प्रवक्ता (हिंदी) राजकीय मॉडल इंटर कॉलेज नैथला हसनपुर, बुलंदशहर प्रकाशित कृतियाँ- बिखर रहे प्रतिमान (दोहा-संग्रह) सुनो सदानीरा (ग़ज़ल-संग्रह)
View all posts