दोस्तों की चाल है/गज़ल/सत्यम भारती
वक़्त भी कमाल है मकड़ियों का जाल है मर रहीं हैं ख़्वाहिशें हिज्र बेमिसाल है दुश्मनी जवां हुई, दोस्तों की चाल है उत्तरों की खोज में सामने सवाल है ज़िन्दगी बवाल है फिर भी मन निहाल है
वक़्त भी कमाल है मकड़ियों का जाल है मर रहीं हैं ख़्वाहिशें हिज्र बेमिसाल है दुश्मनी जवां हुई, दोस्तों की चाल है उत्तरों की खोज में सामने सवाल है ज़िन्दगी बवाल है फिर भी मन निहाल है
दिल्ली अब भी दूर बहुत है मन मेरा मजबूर बहुत है दिन भर रहा बिछावन पर फिर भी तन यह चूर बहुत है किससे अपनी बात कहूँ परवर यह मगरूर बहुत है सच है अब वह बात नहीं पर अबतक वह मशहूर बहुत है माँ के पास सुकूँ पाता हूँ माँ की दुआ में नूर […]
प्यार की मुझको कहानी कह गया आँसुओं की तर्जुमानी कह गया आग जैसी जिसकी फितरत है वही पास आकर मुझको पानी कह गया मैं ज़मीं का था, ज़मीं पर ही रहा कौन मुझको आसमानी कह गया मैं पिघलकर उसमें शामिल हो गया बातें जब मुझको पुरानी कह गया हाल मेरे हैं गरीबों-से मगर, वह मुझे […]
बात जब भी कहीं चली होगी तुमको मेरी कमी खली होगी ख़्वाब आँखों में जी रहे होंगे दिल में तेरे भी खलबली होगी तेरी साँसों से मैं महकता हूँ इत्र जैसी तेरी गली होगी भर गई होंगी आँखों में यादें शाम चुपके से जब ढली होगी जल गये होंगे सारे परवाने कोई शम्मा अगर जली […]
क्या यह दुनियादारी है या मतलब की यारी है तेरा झूठन क्यों चाटूँ मुझमें भी खुद्दारी है तुझको हार दिखी कैसे- सफ़र अभी तक जारी है आँखें सब कुछ कहती हैं होंठों की लाचारी है इक दिन बदलेगा मंज़र दबी अभी चिंगारी है
पत्थर है इंसान नहीं पीड़ा का गर भान नहीं सदा देश को स्वच्छ रखें यह है कूड़ेदान नहीं श्रम से पाया है इसको जीत मेरी,अनुदान नहीं उसको बोझ नहीं समझो बेटी है सामान नहीं उनको भी रोटी दे दो हैं किसान भगवान नहीं झूठे कायर होते हैं सच कहना आसान नहीं ऐसा जीवन क्या ‘सत्यम’ […]
यह कब कहा आसान है जग जंग का मैदान है छॅंट जायगा अँधियार यह सूरज यहाँ द्युतिमान है हिन्दी में हैं तुलसी बसे हिन्दी में ही रसखान है कह दो हमारा हौसला मन में दबा तूफान है जोड़ा है दिल,बाँटा नहीं यह देश हिन्दुस्तान है
मर-मरकर यों जीना क्या रोज ज़हर यूँ पीना क्या घायल हर दिन होना है चाक जिगर फिर सीना क्या रोटी में ही उलझे हम मक्का और मदीना क्या सबके हिस्से दुखड़ा है रानी, मोनू, रीना क्या तुझसे बढ़कर जीवन में कोई और नगीना क्या
क़दम-क़दम दो चार आदमी दिखते हैं लाचार आदमी जो आता है छल कर जाता किसे कहूँ मक्कार आदमी नफ़रत-हिंसा में घिरकर अब बन बैठा अख़बार आदमी बिक जाते हैं दो कौड़ी में बिकने को तैयार आदमी हक़ से वंचित दिखता है जिसका था हक़दार आदमी
प्यार और तकरार तुम्हीं से फिर-फिर है मनुहार तुम्हीं से पतझड़ मन का दूर करे जो गुलशन और बहार तुम्हीं से तुम तक ही मेरी कविताएँ ग़ज़लों का विस्तार तुम्हीं से सारी दुनियाँ तुममें दिखतीं मेरा है संसार तुम्हीं से सपने,ख़ुशबू,बादल,जुगनू सबका कारोबार तुम्हीं से