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Month: जनवरी 2024

कुण्डलियां/नारि-सशक्तिकरण /दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

बिटिया पापड़ बेल के, करे कढ़ाई साफ। बेटा गुलछर्रे उड़ा, सोये ओढ़ लिहाफ। सोये ओढ़ लिहाफ, दुलारा बेटा माँ का। सर्विस वाली देख, भिड़ाता रविकर टाका। करवाती यह काम, खड़ी कर देती खटिया। नारि नारि में फर्क, सास की शातिर बिटिया ।। पैरों पर होना खड़ी, सीखो सखी जरुर । आये जब आपद-विपद, होना मत […]

कुण्डलियां/साहित्यिक पुरस्कार/दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

खले चाँदनी चोर को, व्यभिचारी को भीड़। दूजे के सम्मान से, कवि को ईर्ष्या ईड़। कवि को ईर्ष्या ईड़, बने अपने मुंह मिट्ठू। कवि सुवरन बिसराय, कहे सरकारी पिट्ठू। रविकर तू भी सीख, किन्तु पहले तो छप ले। मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले।। रोमन में हिन्दी लिखी, रो मन बुक्का फाड़। देवनागरी […]

कुण्डलियां/व्यंग्य / दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

बापू की बकरी बंधी, रस्सी वही प्रसिद्ध। राजगुरू सुखदेव का, फंदा नोचें गिद्ध। फन्दा नोचें गिद्ध, चन्द्रशेखर की गोली। स्वार्थ हुवे सब सिद्ध, सफल चाचा की टोली। गाँधी नाम भुनाय, नहीं सत्ता से चूकी। क्रान्तिवीर निष्प्राण, बोल मन जय बापू की।। आये गाँधी नर्क से, दो टुकड़े करवाय। हाथ छोड़ के, “गोड़ से”, चरखा रहे […]

कुण्डलियां/हास्य/ दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

विनती सम मानव हँसी, प्रभु करते स्वीकार। हँसा सके यदि अन्य को, कर दे बेड़ापार। कर दे बेड़ापार, कहें प्रभु हँसो हँसाओ। रहे बुढ़ापा दूर, निरोगी काया पाओ। हँसी बढ़ाये उम्र, बढ़े स्वासों की गिनती। रविकर निर्मल हास्य, प्रार्थना पूजा विनती।। रविकर यदि राशन दिया, दे वह भूख मिटाय। यदि मकान देते बना, घर बनाय […]

कुण्डलियां/आध्यात्मिक/”सुभाषित”/दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

तक तक कर पथरा गईं, आँखे प्रभु जी आज | कब से रहा पुकारता, बैठे कहाँ विराज | बैठे कहाँ विराज, हृदय से सदा बुलाया । नाम कृपा निधि झूठ, कृपा अब तक नहिं पाया | सुनिए यह चित्कार, बुलाये रविकर पातक | मिटा अन्यथा याद, याद प्रभु तेरी घातक ॥ बना क्रोध भी पुण्य […]

कुण्डलियां ‘सामाजिक’/दिनेश चन्द्र गुप्ता ‘रविकर’

सामाजिक मुखड़े पे मुखड़े चढ़े, चलें मुखौटे दाँव | शहर जीतते ही रहे, रहे हारते गाँव | रहे हारते गाँव, पते की बात बताता। गया लापता गंज, किन्तु वह पता न पाता। हुआ पलायन तेज, पकड़िया बरगद उखड़े | खर-दूषण विस्तार, दुशासन बदले मुखड़े || जौ जौ आगर विश्व में, कान काटते लोग। गलाकाट प्रतियोगिता, […]

कुण्डलियां/शिवकुमार दीपक

माता मूरत प्रेम की, शुचि, सुभाषिनी,धीर । सभ्य,सुशील,सुधाकिनी,हरे जगत की पीर।। हरे जगत की पीर , समाई भगवत गीता । कर्म, धर्म, में निष्ठ, सती , सावित्री, सीता ।। कह ‘दीपक’ कविराय,शाप से यम घबराता । दुनिया का हर तीर्थ, रखे चरणों में माता ।।-1 हे माँ जननी दे मुझे , ऐसा तू आशीष । […]

दोहे (माँ का राज़)/डॉ. बिपिन पाण्डेय

माँ की  वाणी में मिले, सद्ग्रंथों  का सार। उसकी ममता के बिना,जीवन है निस्सार।।1   माँ के हाथों से बनी, चीजों में हो स्वाद । सबको ऐसे तृप्ति दे, जैसे कथा प्रसाद ।।2 मात-पिता इस जगत में,ईश्वर  रूप समान। इनके शुभ आशीष में ,प्रभु का हो वरदान।।3 उतने भी सिक्के नहीं,देता कमा कुमार। माँ ने […]

कुण्डलियां/डॉ. बिपिन पाण्डेय

होता है वह ही बड़ा , दुनिया में इंसान। बैठ साथ जिसके नहीं ,लघुता का हो भान। लघुता का हो भान,बड़ा जब खुद को माने। निज संपत्ति सामर्थ्य ,सदा सर्वोच्च बखाने। होता है वह तुच्छ ,लगाता दुख में गोता। करता नहीं बखान ,बड़ा जो सच में होता।।1 होती हमको खोजनी , दुष्ट जनों की काट। […]

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